,

शुकुलजी अऊर मगरुरवा...चच्चा तो अभी जिंदा है...!

12/05/2009 Leave a Comment

हां त बच्चा लोग को चच्चा की टिप टिप…ऊ का है ना बच्चा लोग…कि हम आपको बताये रहे कि बुढऊ का एके दुशमन होत है अऊर ऊ है जाडा यानि कि सर्दी….बहुते तकलीफ़ देरही है ई बार तो...पर ऊ का कहत हैं कि ब्लागिंग रोग बुरा…हमको भी लगा अऊर शुकुल महराज तो इसके घायली हैं…अऊर पीछे पीछे उनका चेले चपटवा ऊ यानि कि मगरुरवा…..

अब शुकुल महराज त ठीक हैं….जो कछु करे सो ठिक ..पर ई ससुर मगरुरवा काहे पे इतरावत है? ई मा कौडी की अक्ल नाही अऊर बाते करत है ऊंची उंची…पर बच्चा लोग इन गुरु और इस चेला चपटवा की बात तो हम आज अंत मा ही करुंगा…कारण कि हमको बहुत सा मेल मिला है जिसमा मगरुरवा कहता फ़िरत है कि चच्चा तो मर गईल...अरे मगरुरवा..तोहार से माफ़ी मंगाये बिना तो चच्चा को यमराज भी नाही ले जा सकत..जियादा राजी मत हो... अभी त आप ई थोडी बहुत टिप्पणियां टिप टिपा ल्यो…वर्ना कहोगे कि चच्चा ने बुलवाय लिया अऊर कछु दिया नाही…

ज्ञान जी का प्रस्ताव और धन!

 

My Photoदिनेशराय द्विवेदी Says:
December 3rd, 2009 at 7:22 am

ज्ञान जी ने सही कहा। लेकिन यह इंसान की फितरत नही है। यह पूँजी की फितरत है कि वह संकेंद्रित होती है। इंसान को इंन्सानियत से दूर ले जाती है। उस पर इंसानी नहीं, सामाजिक नियंत्रण चाहिए वर्ना वह इने गिने इंसानों को धनी तो बनाती है साथ ही लाखों करोड़ों को नंगा भूखा और लाचार भी बनाती है।

जूता विमर्श के बहाने : पुरुष चिन्तन

My Photo M VERMA ने कहा…

गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.'
चप्पल और जूतियो ने हरेक को दुखी किया है. पार्टी वाले हसबैण्ड की बात जोरदार है मजा आ गया.

12/03/2009 06:53:00 पूर्वाह्न

Arvind Mishra ने कहा… My Photo

अब आप भी नारी विमर्श पर शुरू हो गए समीर जी
अब कौन और मिलेगा तो आदरणीय भाभी जी को
मोहरा बना लिए -बिना उनसे अनुमति लिए !
यह थी.....क नहीं है-
और सुबह सुबह मुंह की मांशपेशियों का जो अभ्यास
करा दिया अपने इसके लिए शुक्रिया ! -लगातार
मुस्कुराता रहा हूँ !

12/03/2009 07:15:00 पूर्वाह्न

My Photo वाणी गीत ने कहा…

ये हुई ना ...समानता की बात ...पत्नी की सैंडिल के साथ आपके जूतों की मैचिंग का आईडिया कैसा रहेगा ....??
कहीं कहीं पर मैचिंग वाली बीबी का फैशन तो दिख जाता है .. इसके बारे में नहीं लिखा आपने .. वैसे बहुत मजेदार पोस्‍ट रही आपकी !!
संगीता जी से शत प्रतिशत सहमत ...!!

संजय बेंगाणी ने कहा… My Photo

सही कहा आपने...जूतों के आगे हसबेण्ड की बेण्ड ही बजती है. जो हसबेण्ड न हुए उन पर भी जूते बजते है :)

12/03/2009 12:59:00 अपराह्न

My Photo ज्ञानदत्त G.D. Pandey ने कहा…

ऐसे मैचिंग से हसबैण्ड चुने जाते तो हम कुंवारे ही रहते - हम न मैचिंग न कम्फर्टेबल!
हां तब अपना खाना खुद बना रहे होते और अपने बर्तन खुद मांज रहे होते! :)

12/03/2009 01:44:00 अपराह्न

शरद कोकास ने कहा… My Photo

"कामकाजी स्त्री के लिये आरामदायक चप्पल मिलना सचमुच मुश्किल होता है और यह तलाश जीवन भर चलती रहती है । " लेकिन चप्पल और पार्टी का सम्बन्ध आज पता चला । अब समझ में आया जयललिता जी के पास 700 जोड़ी चप्पले कैसे इकठ्ठा हुई होंगी । सही है पार्टी का काम बहुत महत्वपूर्ण होता है । बाकी बातों पर no comment !!!

12/04/2009 09:28:00 पूर्वाह्न

 

 लो, कर लो बात !! दुर्योधन का भी मन्दिर है भाई
 
 
My Photo हिमांशु । Himanshu ने कहा…

एकदम से नयी जानकारी । पहली बार दुर्योधन के किसी मंदिर के बारे में पता चला । मंदिर के बनने की कथायें भी रोचक हैं ।

December 3, 2009 4:48 AM

 

मैंने इससे पहले खुद को इतना बेबस और लाचार कभी नही पाया था

पी.सी.गोदियाल said... My Photo

मार्मिक, साथ ही यह भी दर्शाता है कि बेटी का अपने पिता से कितना लगाव होता है ! बेटा होता तो शायद वह भी उसी लाईन में सोचता, जो साले साहब , यानी बापू सोच रहे थे !

DECEMBER 4, 2009 12:40 PM

 

पंकज सुबीर की कविता - 'आदमी' -

 

My Photo Udan Tashtari said...

कुछ पंक्तियां विचारों में आ गई - इसे पढ़ते गुरुदेव से बिना पूछे हिमाकत कर ही लेता हूँ...
मरे हुए जिन्दगी जीना,,,
या
मरे हुए का मर जाना...
अपनी पहचान को
खुद न पहचान पाना..
और
बन जाना फलाना..
कोई दुर्योग
या
करनी का फल
या
फिर गलत का प्रतिरोध न कर
उसे सही ठहरा देने में-
एक ऐसा योगदान करना..
मानो
बिना नींव की इमारत की
छत तनवाने में
बल्ली बन टिके रहने की
मशक्कत..
क्या क्या नहीं करता है ..
एक मरा हुआ जिन्दा आदमी..
मरने के इन्जार में..
जिन्दा रहने के लिए..
अपनी पहचान खो..
फलाना बने!!!
आह!!
वो फलाना
या
मैं
या
तुम!!!!
-कौन???
-समीर लाल ’समीर’
---एक बेहतरीन रचना...कई घाव कुरेदती...बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती!!!
मास्साब पंकज जी कुछ लिखें और हम हिल न जायें..ऐसा कब हो सकता है. एक सशक्त लेखनी!!
प्रणाम और आपका आभार!!

04 December 2009 02:30

एक लेटलतीफ़ की शादी -

 

महफूज़ अली said... My Photo

पता नहीं कैसे देर अपने आप हो जाती है."
दी........ मेरा भी यही पेट डाइलोग है.....
ओम और श्वेता को सुखमय जीवन की अशेष शुभकामनाएँ.
दी.... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट..........

December 04, 2009 4:49 PM

प्राणों के रस से सींचा पात्र :बाउ (गिरिजेश भईया की लंठ महाचर्चा) -

 

My Photo अरे भैया, ये क्या कर दिए! एक ब्लॉग कथा के चरित्र पर लेख, वह भी धारावाहिक ? लगता है बाउ कुछ अधिक ही प्रभावित कर दिए। धन्य हुआ प्रभु, आभारी कह कर इस अनुकम्पा को लघु नहीं बना सकता।
..लेकिन भैया लोग क्या कहेंगे? पहले भी एक बार ....
ब्लॉगरी का व्यक्तिगत पक्ष अब बहुत तनु हो गया है।
देखिए, वाणी गीत क्या कह गईं!

पाबू -1 -

ललित शर्मा said... on  My Photo
December 4, 2009 11:37 PM

रंग आज आणन्द घणा, आज सुरंगी नेह |
सखी अमिठो गोठ में , दूधे बूठा मह ||
रतन सिंग जी राम राम

येसेई केसे चर्चिया रिये हो सूरमा भोपाली? ब्लाग चर्चा..

My Photo अदा' ने कहा…

युंकी...
ये हम क्या देख रहे हैं...??
अब देखने वाली बात ये है..कि चर्चा कौन रहा है...? तो चर्चा सूरमा भोपाली रहे हैं.... अब हमें बेफजूल बात करने कि आदत तो है नहीं .....अरे ये चिटठा चर्चा है किसी जमीदार कि बेगारी तो हैं नहीं कि मर्जी न मर्जी करनी ही होगी....हाँ तो सूरमा भाई.... अमाँ मियां.....भोपाल में बैठे हो क्या....मुन्ना-सर्किट को दो मिनट में अंदर कर आये.....या ब्लाग जगत के चार चक्कर लगवा कर टेसन पर छोड़ आये हो... क्यूँ कि आपका नाम सुरमा भोपाली एसए नहीं है न !!
युंकी ....आदमी आप अच्छे हैं और चर्चा की तारीफ भी नहीं करनी चाहिए....लेकिन अगर घोड़ा घास से दोस्ती कर ले तो खायेगा क्या....इसी लिए हम कहे देते हैं.....चर्चा झक्कास है.....बाप...!!

December 4, 2009 10:20 PM

Vivek Rastogi ने कहा… My Photo

अरे खां किया के रिये हो, इतनी सारी पोस्टों की लिंक दे दी है कि पढ़े जा रिये हैं, बस ये अपने सूरमा भोपाली को कैना कि भोपाली सुप्रसिद्ध गालियां नी दे दे।

December 4, 2009 8:42 PM


आज चर्चा में हैं दो नायिकायें -गुप्ता और लक्षिता!

 

My Photo अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी said...

बड़ी देर हो गयी इन नायिकाओं से मिलने में , क्या करूँ ये जो
लोकानिक-रस्साकशी चल रही थी , इसी ने फंसाए रखा ...
ऐसी स्थिति में इस 'गुप्ता' ने थोड़ी राहत दी , 'लक्षिता' के चक्कर
में नहीं पड़ा , क्या पता इसकी वजह से किसी की '' अन्यसंभोग-दुखिता''
जैसी शिकायत बने या फिर कोई खुद को ''खंडिता'' जैसा महसूस करे ...
इसलिए जमाना तो यही कहता है 'गुप्ता' से गलबहियाँ की जाय ...
आपके नायिका विमर्श ने मुझे भी कितना समझदार बना दिया !!!
.............................आर्य , आभार ...................................

05 December 2009 01:31

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ...!!

 

जी.के. अवधिया said...

काश! हमारे धर्म में भी साधु सन्त बनने पर ये सुविधाएँ मिलती!!
ऐसा होता तो हम भी कबके "स्वामी गर्दभानन्द" बन गये होते।
"जिस नारी ने कभी विवाह नहीं किया वो वैवाहिक समस्याओं को कैसे समझेगी और जो कभी माँ नहीं बनी वो मातृत्व की पीड़ा और समस्या कैसे समझेगी"
यह बात तो सही है।
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करते समय मुण्डण मिश्र ने पूछा था कि "गृहस्थ का सुख क्या होता है?" मुण्डण मिश्र गृहस्थ थे और शंकराचार्य ब्रह्मचारी। शंकराचार्य ने इस प्रश्न का उत्तर बताने के लिये समय माँगा था। उस समय में उन्होंने एक मृत व्यक्ति में परकाया प्रवेश करके गृहस्थ के सुख दुख को जाना। फिर अपनी काया में पुनः प्रवेश कर मुण्डण मिश्र के प्रश्न का उत्तर दिया था।

December 4, 2009 7:05 PM

"जो भी मन में हो कह जाओ! द्वार खुले हैं, आ भी जाओ!!" (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

 

हिमांशु । Himanshu said... @ December 5, 2009 8:36 AMMy Photo

१००वीं चर्चा तक की यात्रा की बधाई । बहुत सारे लिंक दे दिये हैं आपने सजाकर ! आभार ।
जिन्हें तुकबंदियाँ कह रहे हैं , उनका सौन्दर्य और उनके संदेश देखकर मुग्ध हो रहा हूँ । आभार ।

 

 

ताऊ पहेली – 51

 

My Photo निर्मला कपिला

Saturday, December 05, 2009 9:01:00 AM

ारे आगे अल्पना और सीमा बेटियाँ क्या कम थी ये सेहर भी पहेलियाँ सुलझाने मे ही लग गयी? वाह शाबाश मेरी बेटियों को हर ब्लोग पर पहेलियाँ हल कर रही हैं बहादुरी ये कि जीवन की पहेलियाँ भी उतनी ही कुशल्ता से हल कर रही हैं । एक मा नालायक, जो पहेली देखते हे डर जाती है । चलो बच्चो ऐसे ही नाम रोशन करती रहो अशीर्वाद्

 
seema gupta My Photo

Saturday, December 05, 2009 9:31:00 AM

रामप्यारी रामप्यारी जावे मत न्या, इतने सरे लोगां का दिल दुख्यावे मत न्या......
miss uuuu..

 

हम तो चले परदेस...खुशदीप -

 

My Photo जी.के. अवधिया said...

"...अगर रोज़गार का ज़रिया और इज्ज़त के साथ रोटी अपने ही राज्य में ही मिल जाए तो किसी को कोई पागल कुत्ता काटता है जो घर से दूर अजनबी शहर में मारा-मारा फिरे..."
यही सत्य है!

December 5, 2009 9:39 AM

तो बच्चा लोग ई त हुवा आजका टिप टिप….अऊर अब अंत मा हम ई कहना चाहते हैं कि शुकुल जी महराज…आप को कोनू बीमारी है का? या चच्चा टिप्पु का नाम लिये बिना आपका नींद नाही आवत है? अरे महराज हमको बी बाल बच्चा है…हमार पास एतना फ़ुरसत नाहि कि हम चौबिसों घण्टा ई बिलागवा सिलागवा खेलत रहें…अऊर आपका तरह फ़ुरसतिया बन जायें?… आपको कभी झा जी चच्चा दिखत हैं..कभी कोनू अऊर ना दिखाई देने लग जाये….

 

हमका एक बात समझ मा नाही आवत है कि आप दूसरन को बर्दाश्त क्यों नाही कर सकत हैं? अगर कोई अऊर चर्चा चलावत है त आपका अऊर मगरुरवा का पेट क्युं दुखने लग जात है? भईया ई कोनू आप लोगन का खेती नाही..ई जनता का खेती बा….

 

अऊर ई मगरुरवा काहे पडी लकडी ऊठात है?  अरे ऊसका समझावो कि एक बार लकडिया हो गईल त समझो का हुईहै?

 

आज आपका चिठ्ठा चर्चा मा मगरुरवा की टिप्पणी देखा जाये…..आपका पोस्टवा ई था  "चिट्ठा अर्थव्यवस्‍था में टिप्‍पणी एक ग्रोसली ओवरवै..." जिस पर मगरुरवा फ़रमाये…

 

कुश on December 05, 2009 2:55 PM ने कहा…

हा हा.. लोग बाग़ ब्लोगर्स को इतना बेवकूफ कैसे समझ लेते है? कि कुछ भी कहो मान लेगा.. ब्लोगर ही तो है..
खैर! हिंदी ब्लोगिंग में ऐसे लोग भी है जो ब्लोगवाणी पर दिन भर यही देखते रहते है कि किसे उनसे ज्यादा टिपण्णी मिली.. आपको खुद अपने ब्लॉग की टिप्पणियों या पेज रैंक का पता नहीं हो.. पर कुछ लोग आपके ब्लॉग का पूरा बही खाता जमा रखते है.. आपके ब्लॉग पर किसने टिपण्णी की, कितनी आत्मीयता से.. कब नहीं की और कब की टाईप तमाम बातो से परेशान.. हलकान होते रहते है.. वास्तव में ब्लोगर, ब्लोगर कम कमेंटर ज्यादा होता है..
लोग टिप्पणिया लेने में इस कदर मशगूल हो जाते है कि भूल जाते है एक ब्लोगर की हैसियत से क्या दे रहे है पाठक को.. पर अब क्या कहिये.. ? सब जगह यही हाल है..
हम तो ये कहते है कि बेवकूफ व्यक्ति अगर बेवकूफी कर रहा है.. तो समझदार व्यक्ति ये कहता नहीं है कि वो बेवकूफी कर रहां है. समझदार व्यक्ति समझ जाता है कि वो बेवकूफी कर रहा है..
वैसे शिव कुमार मिश्रा जी की टिपण्णी पढ़कर व्यंग्य की धार पता चलती है.. बहुत ही उम्दा टिपण्णी
मस्त रहिये.. मौज लेते रहिये..

अब शुकुल जी महराज…ई कोनो पूछने की बात है का? कि ई टिप्पणीयां मगरुरवा किस पर किहिन हैं?  साफ़ साफ़ ऊका पेट का मरोड निकस  रहा है….ई तो साफ़ साफ़ कोई भी समझ सकत है कि ये उडनश्तरी और ताऊ को आपने पोस्ट मा अऊर मगरुरवा ने टिप्पणि मा निशाना बनाया है….त शुकुल महराज ई मगरुरवा के समझा दिहो कि शरीफ़ लोगन पर पत्थर ऊछालना बंद करदें..जिस दिन शरीफ़ लोग अपनी शराफ़त छोड देंगे ऊ रोज ई मगरुरवा का क्या होगा? अऊर पहले चच्चा का हिसाब त करदो….अऊर ई मगरुरवा खुद तो दू महिना मा एक पोस्ट भी नाही लिखत अऊर जो रोजे ठेले जारहे है ऊ सबसे टिप्पणी मा बराबरी करबे का सपना देखत है?  अरे मगरुरवा पहले उडनतश्तरी अऊर ताऊ बनके दिखा फ़िर इतनी उंची बात कर…

 

अब अऊर भी अंत मा हम उडनतश्तरी, ताऊ अऊर अरविंद मिश्राजी से कहना चाहुंगा कि इतने भी शरीफ़ मत बनो कि ये लौंडे लपाडे भी तुम्हारी ऐसी तैसी करन लग जाये ..इसको दू चपियाओगे तबी मानेगा…अऊर हमार जैसन कसम खालो कि ईका अक्ल ठिकाने करने है….आप लोग भी शेरदिल झा जी का तरह हमरा साथ आवो……हम खुला आमंत्रण आप लोगन को दे रहा हूं….

 

त बच्चा लोग अब चच्चा की तरफ़ से टिप टिप..अऊर कोनो बात का चिंता नाही करिहो..ई मगरुरवा अऊर शुकुल जी का त मर कर भी पीछा नाही छोडुंगा….हम चार दिन बाहर चले जात हैं..अऊर ई शुकुल महराज अऊर मगरुरवा उचकने लग जात हैं…..

 

शुकुल जी महराज..ऊ मगरुरवा की टिप्पणी हटाई जाये..अऊर जब भी मगरुरवा की पोस्ट या टिप्पणि हम देखेंगे..हम फ़ट से पोस्ट लिख डारेंगे… मगरुरवा अब तुम किसी नये चच्चा से ना उलझियो…पर तू उलझेगा जरुर…अऊर तुहार का हाल होगा? परमात्मा ई जानत है….

 

हम  अपनी इज्जत मगरुरवा अऊर शुकुल महराज के हाथों नही खराब होने दूंगा! हम कहीं नाही जाऊंगा शुकुल जी  अऊर मगरुरवा…ई कान फ़ोडकर सुन ल्यो… ई चच्चा टिप्पूसिंह का जबान है…ई कोनू उडनतश्तरी, ताऊ या अरविंद मिश्रा नाही है जो तुम लोगन का बदतमीजी बर्दाश्त करुंगा….लोगों बेइज्जती से जीना कोई जीना है का? तो आवो हमारे साथ हाथ मिलावो अऊर इज्जत से जियो….



शुकुलजी अऊर मगरुरवा...चच्चा तो अभी जिंदा है...!

21 comments »

  • मनोज कुमार said:  

    आपकी चर्चा की शैली देख कर चमत्कृत और प्रभावित हुआ। कृपया बधाई स्वीकारें।

  • दिनेशराय द्विवेदी said:  

    वाह चच्चा! इत्ते दिनन किधर रहे? आते ही शानदार चर्चा ठेल दी। हमें भी एक दो लिंक की तलाश थी जो इधर मिल गई। धन्यवाद!

  • Arvind Mishra said:  

    चाचा तुम अन्तर्यामी भी हो गए हो क्या ? ई सब बतिया कैसे तोहें पता चल जात बा हो !
    ऊ मनई त सचमुच नरक कई देहे बा हो -बर्दाश्त क भी कौनो सीमा होथ...
    आपन मौज त मौज लागथ जब कौनो दुसरका मौज लेथ त हुलिया बैरन हुयी जाथ.... !
    दुसरे क नीचता क इंची टेप से नापा जात बा और आपन कई देखात बा की रसातल के अलावा कुछु जिन्दगी में नायी बा !
    ई समझ लिहे हैं की बलागिंग उन्ही का कम्पनी का ठेकेदारी है -आँख खोल राउर लोगन जमाना बदल ग बा
    अब चेला मंडली क जमाना ग हो -तनिक भाल्मंयी की तरह रह !
    ठीक है हम साथ ही हैं चाचा तुम्हारे -काहें की तुहार मुहीम बिलकुल सही है !
    फुल समर्थन !

  • ब्लॉ.ललित शर्मा said:  

    चचा गोड़ लागी बहुत बढिया चरचा रहा
    सीधा-सीधा, ठाड़-ठाड़,नीक चरचा रहा
    चरचा के लिए बधाई, जरा स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
    अउर अईसने चरचा ठेलत रहे।

  • Khushdeep Sehgal said:  

    चच्चा मेरा लौट आया रे,
    चच्चा मेरा लौट आया...
    कलेजों पर लौटाने के लिए,
    सांपों की चोट ले आया रे...

    चच्चा मेरा लौट आया...

    जय हिंद...

  • Anonymous said:  

    जब भी मगरुरवा की पोस्ट या टिप्पणि हम देखेंगे..हम फ़ट से पोस्ट लिख डारेंगे

    तो यह चक्कर था आपके गायब होने का!?

    मतलब ना मगरुरवा की पोस्ट या टिप्पणि आए, ना आप पोस्ट लिखो।
    आज मगरुरवा की टिप्पणि आई और आपने पोस्ट लिख डारी!!


    अगली बार से ध्यान रखना पड़ेगा :-)

    सेहत का ध्यान रखिए। भाटिया जी पिन्नियाँ बनवा रहे हैं। आपको भी भेजेंगे।

    बी एस पाबला

  • Meenu Khare said:  

    समीर जी की रचना बहुत अच्छी लगी.

  • स्वप्न मञ्जूषा said:  

    अरे कहाँ गाईब हो जात हो चाचा जी ...
    येही वास्ते तो हम टिपियाना छोड़ दिए...
    अब आप आ गए तो अब टिपिया रहे हैं....
    चर्चा बहुते नीक बा..

  • Himanshu Pandey said:  

    मिस तो हम भी कर ही रहे थे चचा आपको ! टिप्पणी पर टिप्पणी होती जा रही थी, बस टिप्पणी-चर्चा नहीं हो रही थी ।

    हमरी भी टिप्पणी क सुन-गुन तो आपै लेत हैं, अउर सब त चुपै रहि जात हैं !

  • अनूप शुक्ल said:  

    चच्चाजी, मजा आ रहा है आपकी चर्चा बांचने में। लेकिन एक बात बताओ कि जित्ते दिन झाजी का लिखना-बंद रहा उतने दिन आप अंतध्यान रहे। उधर झाजी उदित हुये इधर आपकी सवारी आ गयी। आप कौन जगह चले गये थे कि बेचारे झा का हाल-चाल न ले पाये? आप मरने की बात काहे करते हैं चच्चा जी? आप तो जियो हजारो साल। आप चूंकि उतने दिन लिखे नहीं जितने दिन अजय भैया का ब्लाग बंद रहा इसलिये हमारी यह बात पक्की ही समझी जाये कि अजय झा ने ही बहुत मेहनत की आज और दो पोस्टें लिखीं आज। बाकी समीरलाल, ताऊ और अरविन्द मिसिर जी आपके साथ कभी न आयेंगे। उनको तमाम जरूरी काम हैं।

    थोड़ा खुश-खुश रहा करो चच्चा। न हो अजय झा इतने ही हंसमुख बने रहो।

    वैसे एक बात यह भी है कि आप हमारा और कुश का विरोध नहीं करोगे तो आपका ब्लाग पढ़ने कौन आयेगा? काहे से कि आपका अपना तो कुछ योगदान तो है नहीं। आज भी देखिये कि आपने केवल टिप्पणियां कापी-पेस्ट कर दीं। इसलिये आपकी भी मजबूरी है। इसलिये आप लगे रहिये। हम इस बार टिपिया रहे हैं। आगे न टिपियायेंगे। आप जारी रहें।

  • बसंती said:  

    आज आप बाजी हार गये अनूप शुक्ल्।इतना भी घमंड नहीं होना चाहिये अपनी अकल पर।अफवाहें तो बहुत थी पर आज साबित हो गया कि टिप्पू चाचा का चरित्र निभाने वाले अनूप शुक्ल ही है और कोई नहीं।इस बुढाती उमर का ख्याल रखो वरना कुश जैसो को बचाने के चक्कर में कुछ न बचेगा।खुद हवा मे लाठी भांज कर अजय को टिप्पू बनाने पर तुले हो।लेकिन अगर आप साबित होने के बाद खुलेआम ब्लोगिग से विदा होने की घोशना करेन तो पिछले दिनोन से इकट्ठा किये गये तमाम सायबर सबूत सामने रख देने को तैयार हो यह बंदा कि अनूप शुक्ल ही टिप्पू चचा है और थे।
    बहुत हो गया नाटक टिप्पू के नाम पर्। अब यह खेल खतम हुया आपका।

  • "सांड" बनारसी said:  

    चच्चा जयराम.....मगरूर कुशवा के लिये ये बात..
    कुश तो बाशी उडंद के पापण है....सुखा हुआ छुहारा है वो क्या मगरूरता करेगा हिम्मत है क्या उसमे ?
    और शु.... के लिये...
    भगवान बना रहे थे गधा गल्ती से बन गया इन्सान .....बत्ताओ भला कोई इतना जुल्म करता है क्या किसि ब्लागर पर जैसा यह करता है सबके साथ.......बिल्कुल घटिया

  • Udan Tashtari said:  

    हमारा कमेंट ही नहीं जा रहा...यह टेस्टिंग है.

  • Udan Tashtari said:  


    चच्चा, बढ़िया चर्चा किये हो. काहे एतन टेंशनिया जात हो. चलो, एक ठो कथा सुना. भतीजे अजय झा जी को भी एक बार सुनाये थे..आपो सुना जाये:


    एक बिच्छू धायल था. साधु उस रास्ते निकला. बिच्छू को उठाकर मलहम लगाया. बिच्छू ने डंक मार दिया. अगले दिन साधु फिर आया, मलहम लगाया और बिच्छू ने फिर डंक मारा. यह सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक बिच्छू बिल्कुल ठीक नहीं हो गया. किसी भक्त ने साधु से पूछा कि वो डंक मारता है, सारा गांव पीठ पीछे आपको मू्रख कह रहा है और आप रोज मलहम लगाये जा रहे हैं.

    साधु मुस्कराये और कहा..देखो डंक मारना बिच्छू का स्वभाव है और मेरा स्वभाव सेवा करना..दोनों अपना अपना काम कर रहे हैं एक दूसरे की वजह से हम अपना स्वभाव क्यूँ बदलें और रही बात गांव वालों की पीठ पीछे बात करने की तो ईश्वर नें मुझे बाजू में कान दिये हैं, पीठ पर नहीं..तो क्यूँ सुनूँ पीठ पीछे की बात!!


    बाकी चच्चा, बीच बीच में काहे गुम हो जाते हो. इन्तजार लगा रहता है..

    एतन न गुस्साया करिये. तबीयत गड़बड़ा जाई त नुसकान केकर होई?

    बस, आज के लिए इतना ही काफी.

    आखिर में, टिप्पू चच्चा की जय.

  • वाणी गीत said:  

    कहाँ गायब रहनी टीपू चाचा ...टिपण्णीयां के सुध लिए खातिर कोऊ ना रहे ....तनिक स्वस्थ्य का ध्यान रखा जाए ...और टिपण्णी चर्चा का भी ...!!

  • ताऊ रामपुरिया said:  

    चच्चा गजब का चर्चा किये हो. इस चर्चा का कोई मुकाबला नही. आप इसे जरा नियमित करें. और स्वास्थ्य का ख्याल रखें.

    ऊपर हमारे गुरुजी ने कहानी सुनाया है तो हम सोचते हैं कि एक दो लाईन हमारी भी सुन लिजिये. वैसे हम तो आपका बालक हूं.

    सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक।
    रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक।।

    रहिमन तहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
    हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।।


    अब और क्या कहें चच्चा?

    चच्चा को रामराम.

  • Unknown said:  

    मान गये आपको, हर टिप्पणी पर नजर रखते हैं।

    नाम टिप्पू है मेरा हर टिप्पणी की खबर रखता हूँ ... :-)

  • Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said:  

    अरे चच्चा...कित्ते दिनों बाद तो आए हो और आते ही घमासान मचा डाला :)

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