चच्चा भतीजे की अपनी जोडी ,,,,टिप्पणियों की मटकी फ़ोडी

11/29/2009 Leave a Comment

कहते हैं न कि जहां चाह वहां राह ...टिप्पणी चर्चा में हमारे सामने कुछ दिक्कतें आ रही थीं हमने फ़ौरन चच्चा से फ़रमाया ...फ़ौरन से पेश्तर एक आईडिया चच्चा ने हमें बता दिया ॥और उसी पे अमल करते हुए अब आपके सामने ये चर्चा ठेली जा रही है ....चच्चा की तरह तो धांसू नहीं होगी ॥हो भी कैसे वे चच्चा हैं हम भतीजा ......इसलिए कुछ तो फ़र्क रहना भी न चाहिये ...काहे से आप लोग ओईसे भी हमें और चच्चा को मानते हैं ...और अब तो हम चच्चा के इतने करीब हैं दिल से ...और वे हमारे कि हमें भी लगता नहीं है कि कोई और हैं ....वे हमेशा हमारे साथ हैं ॥हमारे भीतर हैं ...चलिए छोडा जाए ई सब बात और चर्चा देखा जाए

पाबला जी की दिल्ली यात्रा की रपट
खुशदीप सहगल November 28, 2009 7:08 AM
पाबला जी,
ये मुलाकात तो इक बहाना था,
प्यार का सिलसिला बढ़ाना था...
फोटो लाजवाब, रिपोर्ट टॉपम-टॉप, पाबला जी दे प्यार दा तड़का...बस बल्ले ही बल्ले...
जय हिंद...

झाजी कहिन :- अमां खुशदीप भाई ये सारे फ़िलमी गाने शाने आप बिलागर्स को ही सुना देते हो ...भाभी जी के लिए कोई बचा रखा है कि नाहीं ...सिलसिला की याद न दिलाया करो यार ....बिग बी की ...चिंता रेखा याद आ जाती है ....अब तो एक अड्डा बना ही लिया जाए ...फ़िर बनाएंगे ,मिलन, यादों की बारात, तुम मिले दिल खिले ........

खुशदीप जी के सिविल वार में वकील साहब की सलाह :-
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
खुशदीप जी,
बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख है, यह।
ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया की समस्या है। पूरी दुनिया उस से निपट सकती है। लेकिन उस के लिए 'बड़ों' को लालच छोड़ना होगा। दुनिया के संपन्न देश नहीं सुधरते हैं तो उन के विरुद्ध एक होना पड़ेगा। इसी तरह देशों में संपन्न वर्ग नहीं समझते हैं तो बाकी लोगों को एक होना पड़ेगा।
अब लगता है कि गुट निरपेक्षता के नाम पर विकासशील देशों की एकता की नीति सही थी वह समाप्त क्यों हो गई? विकासशील देशों को फिर एक होना होगा। इसी तरह विभिन्न देशों में भी उत्पादन और जीवन शैली की अराजकता को नियंत्रित करने के लिए प्रयत्न करने होंगे। जो भी उत्पादन की अराजकता और जीवनशैली की अराजकता के विरुद्ध हैं उन्हें एक होना पड़ेगा।
झा जी कहिन :- का ओकील बाबू जे बडका लोग .....ससुर लालच छोड देगा ...तो बडका बनेगा कईसे जी इहां राज्य सब कपड फ़ोडौव्वल में लगा है ...तो देश सब कहां से एक हो पाएगा .....ई अंग्रेजवा सब का नीति ....फ़ूट डालो राज करो ॥अभी तक हिट है न .....एक दम सुपर हिट...

शरद भाई की ट्रेन के डिब्बे में घुस कर
पी.सी.गोदियाल ने कहा…
आपकी इस रचना में ये दो ख्याल दिल को भा गए शरद जी !
"एक ज़माने में थर्ड क्लास कहलाने वाला डिब्बा अपग्रेड कर सेकंड क्लास कर दिया गया लेकिन उसमें सफर करने वाले का क्लास वही रहा ।"
"किसी की टांगों पर
किसी का सर
या सर पर टांगे हों
तब भी
कोई बुरा नहीं मानता
टांग पसारने की
उपलब्धि हासिल होते ही
मुस्कुराता है आदमी
चलती है रेल ।"
Saturday, November 28, 2009

झा जी कहिन : - माने तो कथा सार ये कि ....चाहे डिब्बा का कौनो क्लास कर दिया जाए......मुदा पब्लिक का क्लास एके रहता है ....ई पबलिक्वा ....एक दम नालायक है ...पास न न करती है ......एको क्लास ....हमेशा फ़ेल हो जाती है .......॥

ताऊ जी की गोल्डेन जुबली शनिचरी पहेली में हम खुदे :-
अजय कुमार झा
November 28, 2009 8:50 AM
1.ताऊ जी और उनकी पूरी टीम को बधाई इस सफ़लता के लिए..
२. ट्राफ़ी बहुत सुंदर है और आकर्षक भी डिजाईनर को जादू की झप्पी दी जाए .
३. बिल्लन को इत्ता भारी भारी पढने से रोका जाए.....बचपन में इत्ता बोझ डालना ..उस बेचारी छोटी बिल्लन पे ..गलत बात है ...यार असली बात तो ये है कि पहले बिल्लन का जवाब देके तीस तो मिल जाते थे ..बस पासिंग मार्क्स ...मगर अब तो अंडे ही मिलने वाले हैं
४. पहेली का उत्तर क्लू मिलने के बाद भी दें दें तो हमें होशियार बच्चा ही माना जाए..
बस ..अभी इतना ही ..कुछ रह तो नहीं गया ...ऊंउंउं ....नहीं बाकी बाद में
झा जी कहिन :- अरे धत ई अपने कहे पे का कहें जी ......ई तो आप खुदे पढिए जी

मिसर जी रपट लीक किए, सभी उस पर टीप दिये

मनोज कुमार said...
अद्भुत! मुग्ध करने वाली!! विस्मयकारी!!!
जय सोतोषी मां का पोस्ट कार्ड आ जाने पर दस पोस्टकार्ड भेजने की तरह की शर्तों के साथ मेरा मन कर रहा है इस पोस्ट को बांटूं और क़सम दूं कि आप भी इसे दस लोगों तक पहुंचाइए।
रिपोर्ट के हिस्सों को जल्द अपने ब्लाग पर पब्लिश कीजिए। उत्सुकता बढ़ रही है।
November 27, 2009 9:33 PM
Udan Tashtari said...
जस्टीस तुलाधर १९६४ से रिटायर हो ग्कर बड़ी लम्बी खींच ले गये....:)
धीरे धीरे थोड़ी थोड़ी लीक करिये....तबीयत भी तो आड़े आ रही होगी.
November 28, 2009 7:40 AM
नीरज गोस्वामी said...
पहले दुर्योधन गरीब की डायरी लीक कर दी अब आप तुलाधार के पीछे पड़ गए हैं...आखिर आप चाहते क्या हैं? स्पष्ट करें...
नीरज
November 28, 2009 11:27 AM
रंजना said...
ये सबकी "लीक" तुम्हारे ही हाथ कैसे लग जाती है भाई,जरा बताना...
लेकिन जो भी हो कभी दुर्योधन की डायरी तो कभी किसी गोपनीय मंत्रणा (मीटिंग ) की डिटेल...एक से बढ़कर एक चीज तुम्हारे हाथ लगती है...
अपार उत्सुकता से प्रतीक्षारत हूँ...जल्दी प्रकाशित करो...
November 28, 2009 2:15 PM
झा जी कहिन :- हे भगवान ...एतना इम्पोर्टेंट कमीशन का उससे भी इंपोर्टेंट रिपोर्टवा आप लीक न कर दिये ....और सब लोग स्वाद स्वाद ले ले के ओसका मिट्टी पलीद किए हैं न ....जाईये ई लोकतंत्र में सबसे बडका पाप किए हैं आप लोग ....उपर से कमीशन रपट लीक करना का कुल कमीशन केतना हुआ ई भी डिस्क्लोज नहीं किये हैं ....ठीके कहते हैं सब .......पारदर्शिता तो रहिये नहीं गया है इहां .....

दिल्ली में हुई ताजा ब्लोग बैठकी की रपट में कहा :-
anil pusadkar ने कहा
झा साब हम भी कम इशमार्ट नही हैं,एक चांस हमको भी दे कर देखिये,तहलका मचा देंगें हम भी।बुलाईये तो सही न आयें तो कहियेगा।
ताऊ रामपुरिया ने कहा…
यार यदि अपने ब्लोग्गर्स को लेकर एक फ़ैशन परेड कराई जाए तो हिट रहेगा ...महफ़ूज़ अली, दीपक मशाल, खुशदीप सहगल....एक से एक स्मार्ट छोरों की लाईन है अपने पास ........।
आपके इन छोरों में अनिल पूसदकर का भी नाम शामिल किया जाये. और इनको लेकर हम एक फ़िल्म जल्दी बनाने वाला हूं...इनसे बात करके देखिये..कि काम करेंगे या नही?
रामराम.
झा जी कहिन :- बताईयोतो हमको का पता था कि एतना एलिजिबल बैचलर सब इंतजार में है ॥ब्लोग्गर सब का फ़ैशन परेड तो अब करवाना ही पडेगा ...ऊपर से राजीव तनेजा और संजू तनेजा जैसे फ़ुलफ़ैमिली बिल्लगर्स के लिए एक ठो कपल शो भी रहेगा ....एक दम से टैण टैनेने हो जाएगा ...ऊ का कहते हैं न ॥झक्कास ॥
गोदियाल जी के अंधड में :-
Mahfooz Ali said...
अब पता नहीं यह समझ में नहीं आ रहा है...कि कसाब को पाला ही क्यूँ जा रहा है..????? ३१ करोड़ बर्बाद कर दिए...... उतने में तो एक हॉस्पिटल या स्कूल बन जाता ..... अरे सीधा सा केस है..... सबूत भी है..... चढ़ा दो फांसी..... कहानी ख़त्म और अगले कई ३१ करोड़ से हॉस्पिटल या स्कूल या कारखाना बनवाएं......
November 27, 2009 3:24 AM

झा जी कहिन :- यार महफ़ूज़ भाई .....कसाब को पालें न तो क्या करें ...और रही इकत्तीस करोड बर्बाद करने की

बात .....तो वो तो वैसे भी कोडा जैसा कोई घोडा/गधा ....चर ही जाने वाला है देर सवेर ....। लो कल्लो बात सीधा सा केस मतलब .......अपने यहां कानून का राज है जी कोई जंगल राज थोडी है .....और कानून के राज में देर होती है ....अंधेर .....मगर यार यहां तो देर और अंधेर दोनों ही है ...छोडो यार मूड खराब हो जाता है ॥

नेपथ्यलीला में चल रही बहस में :-
प्रवीण शाह ने कहा…
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बेहद कायराना कृत्य,
विचार का विरोध विचार से ही होना चाहिये,
सौमित्र जी एक तरफ कह रहे हैं "ये पूरी तरह सजा पाने के हकदार है।" दूसरी ओर लिखते हैं "मेरे इस लेख का मतलब ये भी नही की मई विश्व हिंदू परिषद् की कार्यवाही का समर्थन कर रहा हूँ , हिंसा किसी भी प्रकार से जायज नही है।" किस पाले में हैं आप ?
November 28, 2009 10:32 AM
वीरेन्द्र जैन ने कहा…
मुझे अज्ञात कुल शील घूंघट में रहने वालों से तो कुछ नहीं कहना है किंतु अनुनाद सिंह जैसे लोगों से निवेदन है कि अब इस देश में एक सविधान के अंतर्गत समाज को संचालित किये जाने की व्यवस्था की गयी है और चीजों को लिज़लिज़ी भावुकता की जगह उनके यथार्थ में देखने की ज़रूरत है। गुरु शिष्य के पवित्र और पति पत्नी के अपवित्र सम्बन्धों जैसे आधार पर भारतीय संस्कृति के नाम पर गैर कानूनी हरकतें की जायेंगी तो देश में लोकतंत्र नहीं चल सकता। जिस भरत के नाम पर आप अपने आप को भारत कहते हैं उस भरत का जन्म शकुंतला की कोख से कैसे हुआ इसकी कथा भी आपको पता होगी। भारतीय संस्कृति के और विस्तार में जाना तो यहाँ सम्भव नहीं है किंतु अनुरोध है कि हरि मोहन झा लिखित पुस्तक खट्टर काका पढ लीजिये जिसमें सब कुछ भारतीय प्राचीन ग्रंथों में से ही दिया गया है। भारतीय संस्कृति में ही स्वयंवर और गन्धर्व विवाह सहित नियोग प्रथा भी प्रचलित थी।
morality differs from place to place and age to age इसलिये इस युग में आज के समय की नैतिकिता और कनून के हिसाब से समाज चलेगा। वैसे लोकतंत्र में आप अपने लिये अपनी जीवन पद्धति चुनने को स्वतंत्र हैं किंतु जब आप दूसरे की जीवन पद्धति में अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं तो वह गैर कानूनी और आज की नैतिकता की दृष्टि से अनैतिक है। एक पोंगा प्ंथी और भ्रष्ट सरकार के राज्य में जो ये पालतू सांस्कृतिक ठेकेदार पुलिस के संरक्षण में जो कुछ कर लेते हैं वह गैर भाजपा सरकार में क्यों नहीं कर पाते? क्या उन्हें पता है कि भोपाल समेत पूरे देश में जिनमें भोपाल के उनके संगठन के पदाधिकारी भी सम्मलित हैं, लिव इन रिलेशन को अपनाये हुये हैं?
पोंगा पंथ और गलत विश्वासों सहित नागरिक स्वतंत्रता के पक्ष में किया जाने वाला काम भी वर्ग चेतना के लिये भाव भूमि तैयार करता है
November 28, 2009 10:47 AM
Suresh Chiplunkar ने कहा…
प्रवीण भाई, कथित बाबा और कथित लवगुरु दोनों ने कहा है कि "आधुनिक विवाह संस्था एक प्रकार की वैधानिक वेश्यावृत्ति है…" इस कथन पर आप क्या कहना चाहेंगे?
साथ ही उस बाबा और मटुकनाथ से पूछना चाहता हूं कि क्या उनकी बहन की शादी भी वेश्यावृत्ति की श्रेणी में आती है? पुस्तक का शीर्षक है "विवाह : वैधानिक बलात्कार", क्या उनकी बहन के साथ भी बलात्कार हो रहा है? यदि हाँ, तो वे इसे रोकने के लिये क्या कर रहे हैं (पुस्तक लिखने के अलावा)।
November 28, 2009 11:23 AM
वीरेन्द्र जैन ने कहा…
सुरेशजी आप घटना से उपजी मूल समस्या से इधर उधर होकर अपराधियों की पक्षधरता कर रहे हैं। पहला सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक देश में विचार स्वातंत्र होगा या नहीं (जबकि इसी संघ परिवार के लोग इमर्जेंसी में माफी मांग कर बाहर आने वाले विचार स्वात्ंत्र के नाम पर पेंसन खा रहे हैं।) दूसरा यह कि आप विचार जैसी आब्जेकटिव चीज को सब्जेक्टिव बना रहे हैं अर्थात लेखक की माँ बहिन पर उतर आये हैं जबकि यह अपने आप में ही स्पष्ट है कि कोई विचार यदि कार्य रूप लेता है तो उसमें सभी आते हैं। मैं अपने लड+अके के रोज़गार के लिये आरक्षण सम्बन्धी अपने विचार थोड़े ही बदल दूंगा।
बाबा अजय दास ने जो लिखा होगा वह सैकड़ों बार सैकड़ों तरह से आ चुका जिसे अमृता प्रीतम के उपन्यासों, रजनीश के भाषणों, और हंस के स्त्री विशेषांकों में तो मैंने स्वयं देखा है। बहुत सम्भव है कि बाबा द्वारा उत्तेजक शीर्षक देने का यह प्रयास प्रकाशक की सलाह पर तस्लीमा नसरीन, सलमान रश्दी,की तरह पुस्तक को लोकप्रिय कराने के लिये हो और विरोधी दिखने वाले पक्ष एक दूसरे के पूरक हों क्योंकि पुस्तक धड़ाधड़ बिक रही होगी।
मैंने किताब नहीं पढी है इसलिये अधिकृत रूप से तो कुछ नहीं कह सकता किंतु कभी मेरे मन में भी यह विचार आया था कि जिस दम्पत्ति के बीच में प्रेम नहीं है उस दाम्पत्य जीवन में पत्नी का स्थान एक आदमी की वेश्या से अधिक और क्या है, जो अपने जीवन यापन और बच्चों के पालन पोषण के लिये पति के साथ सोती है। में चाहता हूं कि इस विषय पर खुल के विमर्श हो भले ही इसी दूसरे ब्लाग पर हो क्योंकि मुझे ज्यादा लोकप्रियता की दरकार नहीं है
November 28, 2009 2:26 PM
अनुनाद सिंह ने कहा…
जैन साहब,
बहुत अच्छी बात कही है आपने -
"morality differs from place to place and age to age"
यदि ये सही है तो क्या यही बात आपके 'लोकतंत्र' के लिये लागू नहीं है? 'लोकतन्त्र' की क्या कोई सर्वमान्य परिभाषा है? जिन लोगों ने पिटाई की क्या वे 'लोक' नहीं हैं?
किसी ने ठीक ही कहा है कि 'आज की पत्रकारिता लोकतन्त्र का चौथा धब्बा है।' आप भी उस धब्बे के सबसे काले भाग हैं। अपनी जरूरत के हिसाब से लोकतन्त्र का रोना रो लेते हैं।
शायद आपको अर्जुन की कथा नहीं पता जिसने अज्ञातवास में जिस राजकुमारी को नृत्य की शिक्षा दी उसका हाथ थामने से मना कर दिया। (प्रस्ताव कन्या के पिता ने दिया था)।
November 28, 2009 2:55 PM

झा जी कहिन :- वाह जी अब लग रहा है कि असल मायने में बिलागिंग हो रही है ...मुद्दों पर आ रही पोस्टों पर क्रिया प्रतिक्रिया, तर्क-वितर्क, विश्लेषण .....असल में तो यही मकसद है इस मंच का .....और जब बात गंभीर हो और उसे गंभीरता से लिया जाए तो फ़िर जो बहस होती है उसकी संजीदगी और सार्थकता तो देखते ही बनती है ...जारी रहे ...मा बदौलत खुश हुए ॥
शब्द को झुकाने वाली इस पोस्ट पर :-
गिरिजेश राव said...
क्या क्या क़ोट करूँ - पूरी कविता ही?
अद्भुत बुनावट।
@सांसो का, लेकिन
बीच बीच में
हिचकी हिचकियां
कौन कहेगा ?
नयी अराजकताएं
कौन धरेगा ?
शब्द यदि बध गये …..
शब्द यदि ढल गये …….
शब्द यदि झुक गये……
..गहरी बात। मत बँधो बाँधो - मुक्त होकर लिखो, खूब लिखो। ऐसे ही अद्भुत लिखो।

झा जी कहिन :- अब इनका टीप पर का कहें ....लंठ हैं ॥उपर से आलसी भी .....और ई सबसे उपर अद्भुत टीपकर्ता.....माने कि .....टीप के लिहाज से भी संभाल के रखने वाले धरोहर हैं ....सो बस पढे जाईये...

आज एतने .....काहे से कि प्रयोग है एक ....जे सफ़ल रहा तो बस आगे से धमाले धमाल ॥एक ठो महत्वपूर्ण बात .....कल एक पोस्ट पर एक संजीदा और साफ़ दिल ब्लोग्गर ने आवेश में ......एक टीप दे मारी ........बाद में उन्हें भूल का एहसास हुआ ......अपने स्वभाव के अनुरूप उसे मानकर उन्होंने क्षमा भी मांग ली ....किंतु तीर तो कमान से निकल ही चुका था ...और जाने कितने जानों अनजानों को कष्ट पहुंचा चुका था .....तो बडे बुजुर्ग जो कहते थे ठीक ही कहते थे कि..
...कमान से निकला तीर और ...एक बार निकले हुए शब्द ....वापस नहीं आते ....तो टीपते टिपाते समय .....अपना और दूसरों का ख्याल रखें ॥

19 comments »

  • Himanshu Pandey said:  

    गिरिजेश भईया की टीप तो रहेगी ही भईया किसी भी टिप्पणी चर्चा में ।
    पक्का व्लॉगर हैं वे ।

    नये ढंग की टिप्पणी चर्चा का आभार ।

  • दिनेशराय द्विवेदी said:  

    चर्चा खूब पसंद आई, और सबसे ज्यादा पसंद आई वैधानिक चेतावनी...
    ...कमान से निकला तीर और ...एक बार निकले हुए शब्द ....वापस नहीं आते ....तो टीपते टिपाते समय .....अपना और दूसरों का ख्याल रखें ॥

  • Arvind Mishra said:  

    अब यी कौनो नयी चर्चा शुरू हुआ है का भैया लोगन !
    नीमन हौवे इअहू हो !

  • Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said:  

    नया तेवर चर्चा की भी अच्छा लगा.

  • ब्लॉ.ललित शर्मा said:  

    टिप्पणी चर्चा का आभार ।

  • Khushdeep Sehgal said:  

    झा जी,

    आपकी बहुआयामी प्रतिभा का एक और आयाम...
    टिप्पणियों की चीर-फाड़ बढ़िया है...

    और रही आपकी भाभी को गाना बचा कर रखने की बात तो उनकी डोली वाले दिन ही हमने अपने बैंड वाले से ये गाना बजवा दिया था...

    दिल में छुपा कर प्यार का अरमान ले चले,
    हम आज अपनी मौत का सामान ले चले...

    जय हिंद...

  • Anonymous said:  

    मटकी फोड़ी!?
    दोपहर को तो कह ही रहे थे कि भांडों (बर्तनों) के बीच हैं।

    बी एस पाबला

  • Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said:  

    बहुत बढिया रही चिट्ठा चर्चा....

  • Udan Tashtari said:  

    बेहतरीन चर्चा...चच्चा की तबीयत कैसी है भई...

    जारी रहिये एक फ्रंट संभाले!!

  • ताऊ रामपुरिया said:  

    वाह झा जी मजा आगया आपकी चर्चा में. चच्चा को हमारी रामराम कहियेगा. अब चच्चा की तबियत ठीक होगी? शुभकामनाएं.

    रामराम.

  • मनोज कुमार said:  

    आपकी चर्चा की शैली देख कर चमत्कृत और प्रभावित हुआ। कृपया बधाई स्वीकारें।

  • Pramendra Pratap Singh said:  

    चच्चा प्रणाम :)

  • Anil Pusadkar said:  

    जय हो चच्चा,खुश हुआ बच्चा।

  • पी.सी.गोदियाल "परचेत" said:  

    बहुत सुन्दर चुटकिया चर्चा में अजय जी , डेरी से देखने के लिए क्षमा !

  • डा० अमर कुमार said:  


    तुम मिले दिल खिले ........
    मेरा टिपियाने को जी चाहता है, लेकिन पहले..
    कोई भला मानुष चच्चा की चुनौटी खोज के ला दे !
    वह उनको पकड़ा आयें, फिर टिपटिपायें टिपटिपायें टिपायायें हम हरदम !
    अजय बाबू की चरचा चुटकी बन्हींया है, ओधर चच्चा अपना चुनौटी मँगायें हैं ।

  • RAJNISH PARIHAR said:  

    बहुत बढिया रही चिट्ठा चर्चा....आभार ।

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