चच्चा टिप्पू सिंह हाजिर है! सब लोगन को टिप..टिप....!
ये लो जी …आगये आपके चच्चा टिप्पू सिंह टिप टिप करते करते…ऊ का है ना कि आजकल सर्दी बडा हुई गवा त हमको बडा मुश्किल हुई गवा। अब बच्चा लोग आप त जानबे ई करते हो कि बुढौती का सबसे बडा दुश्मन जाडा ही हुआ करत है। वैसे हमारे दुश्मन तो ई सोचके ई खुश हो लिये होंगे कि चच्चा तो सर्दी मे निपट निपुटा गये होईहैं?
ऐतना खुश मत हो दुश्मन लोग…तुम जैसा अगरुरवा मगरुरवा के तो चच्चा मरते मरते भी निपटा जायेंगे….जब तक चच्चा को इन्साफ़ नाही मिलेगा..चच्चा तो मर भी नाही सकत..काहे से कि जो इंसान अपनी बेइज्जती का बदला नाही ले सकत ऊ को घोर नरक मा जाना पडत है…तो बच्चा लोग हम तो अब इस उम्र मा नरक मा नाही जायेंगे…और यहीं ई धरती मा पै रहकै इन से अपना बदला पूरा करेंगे…देखते हैं कौन थकता है…चच्चा का एक ही मिशन…है।
तो बच्चा लोग अब ताली बजाओ..और चच्चा ने जो टिप्पणीयां पढी है ऊ का मजा ल्यो और घर जाओ सर्दी मा….अऊर हां बकिया बात आप अंत मा जरुर पढके जाना…..
बाबा! पप्पा ना, यंही छुपा के अंडा खिलाते हैं मुझे!
जी.के. अवधिया said... यहाँ तो बच्चे के भलाई के लिये ही अंडा खिलाया जा रहा है किन्तु आजकल हम लोग अपने स्वार्थ के लिये ही बच्चों से झूठ भी बोलवा लेते हैं, मोबाइल में नंबर देखने के बाद यदि किसी से बात नहीं करनी रहते हैं तो अपने बच्चे से कहते हैं कह दे "पापा घर में मोबाइल छोड़ कर बाहर गये हैं"।
(अब बच्चा तो बच्चा ही है यदि वह कह दे कि "पापा कह कह रहे हैं कि वे घर पर नहीं हैं" तो .....)NOVEMBER 21, 2009 9:40 AM
ये क्या हो रहा है भाई, ये क्या हो रहा है...खुशदीप
राजीव तनेजा said... मौका देख रंग बदलना तो शुरू से ही अमेरिका की फितरत रही है...
पाकिस्तान...चीन और अमेरिका का गठजोड़ वाकयी चिंता का विष्य है..
पाकिस्तान का तो हमें शुरू से ही दिखाई दे रहा है कि वो हमारा दुश्मन है...चीन की भी पीठ पीछे वार करने की शुरू से आदत रही है..लेकिन इस अमेरिका का क्या करें?... जो हमारे सामने हमारी बढाई और पीठ पीछे हमारा ही बंटाधार करने पे तुला है
और स्लॉग ओवर के बारे में बस इतना कहूँगा कि...
हे ऊपरवाले...हे परवरदिगार...
मुझे एक नहीं दो चार दे...
बिपाशा नहीं कैटरीना का प्यार दे
नहीं चाहिए और बच्चे मुझे
तू बस मुझे इनका प्यार दे
;-)November 21, 2009 10:29 AM
हरकीरत ' हीर' said... वाओ ....लाजवाब तस्वीरें .....बेहद ही खूबसूरत है आपका ये अजीब से नाम वाला शहर .......बहुत नसीब वालीं हैं जो इन हसींवादियों की सैर मयस्सर है ....मधुर आवाज़ फिर सुनने आउंगी ......!!
NOVEMBER 22, 2009 8:07 PM
अजय कुमार झा said... दीपक लाला थारी उमर देख के लगता है ..यो खुशी अभी कुछ दिना पहले ही बीती होगी,,,,ओर जब यो सिर्फ़ खुशी रई होगी मतबल बीतने से पहले यार.....तब इसने यो लिख मारया..और तमारा मशाल तो जला रैवे ही है भाया ॥
20 NOVEMBER 2009 17:05
हिन्दु बेटे के अंतिम दीदार के लिए कब्रिस्तान में खोला गया मुस्लिम मां का चेहरा
महफूज़ अली ने कहा… कोई भी धर्म और मजहब एक-दूसरे का मजाक उड़ाने का रास्ता नहीं बताते हंै फिर न जाने क्यों इन दिनों लोग धर्म के साथ खिलवाड़ करने का काम कर रहे हैं।
bilkul sahi kaha aapne...
aapki is post ne rula diya.... aansu chhalak aaye ....
इंसानियत से अच्छा कोई धर्म नही। इंसान से अच्छी कोई जात नही और इंसानी रिश्तों से अच्छी कोई बात नही। Anil bhaiya ki is baat se poori tarah sahmat.....NOVEMBER 21, 2009 12:53 PM
खंडिता है यह नायिका :(षोडश नायिका -७)
हिमांशु । Himanshu said... चल रहा है यह नायिका भेद । नायक भी अजब - इतने सारे सबूत लेकर प्रवेश करे, तो क्या हो ? नायिका का सीधा वार देखिये (स्वाभाविक ही है ) -
"क्यों छिपा रहे तन के नव-नख-व्रण अनगिन
किस भाँति चिह्न, रद-दंशित अपने अधर दुराओगे
परनारि संग-सूचक नवीन परिमल सुगंध
दिशि-दिशि फैली है, बोलो कहाँ छिपाओगे !"20 November 2009 19:28
'अदा' said... हिमांशु जी ठीक कहते हैं साबूत लेकर नहीं आना चाहिए...:):)
वास्तव में 'खण्डिता' नाम इस भाव को चरितार्थ करता है...
बहुत सुन्दर.....आभार....
मैंने तो एक ही चित्र ढूँढा था ...पहला चित्र बहुत सही है....20 November 2009 19:58
Ratan Singh Shekhawat said... नरेश जी बहुत बढ़िया कविता छाँट कर लाये हो ! पढ़कर मजा आ गया |
यह भायला शब्द भी कितना अपना पण लिए होता है इसीलिए तो मैंने एकभायला .कॉम के नाम से डोमेन ले रखा है21 November, 2009 5:39 PM
राज भाटिय़ा November 21, 2009 1:55 PM
अरी राम प्यारी पहले तु अपनी नानी का नाम बता? अरे हमारा सीधा का भगवान रामचंद्र जी से जो काम करवाना हो बस माथा टेका ओर मन्नत मान ली, अब तु इस नानी दादी की कमीशन मत बीच मै लाना.
योगेन्द्र मौदगिल November 21, 2009 8:56 PM
ईब सुणले ताऊ खूंटे की.....
अक्
एक बै की बात
अपणे जरमनी वाले भाटिया जी रोहतक तै हरियाणा रोडवेज की बस म्हं बेठ कै दिल्ली जा रहे थे. बस नै ताऊ चला रहया था. मजे की बात दोनो जगाधरी मैं सैट....
ताऊ तो बस नै सांप की ढाल आड्डी-तिरछी चलाए जा था. अर भाटिया नै अपना सिर बाहर काढ़ राख्या था. इतने म्हं सामणैं तै नीरज गोस्वामी सीधे खोपोली तै वाया राजस्थान वाया हरियाणा आण लागरे थे.
ईब भाइयों अर लुगाइयों जगाधरी मैं सैट ताऊ नै कसूत्ते ढंग तै बस काट्टी तो भाटिया जी का कान कट कै नीचै गिरग्या.
भाटिया जी चीखे.. ताऊ नै बस रोक्की अर् बूझण लाग्या रै के होग्या....?
भाटिया जी बोल्ले, रै ताऊ.. मेरा कान इस टक्कर मैं टूट कै नीचै पड़ग्या..
ताऊ बोल्या, रै भाटिया जी, तेरा तो कान गिरग्या लोगों का पता नी के के गिरग्या... ईब रोना बंद कर मैं तेरा कान ढूंढ कै ल्याऊं सूं...
ताऊ नै रिवर्स लगाया. गाड़ी पाच्छै करी. अर एक कान ल्या कै बोल्या, यू ले भाटिया जी तेरा कान..
भाटिया जी बोल्ले, यू मेरा कान कोनी...
ताऊ बोल्या, रै भाटिया जी, यू कान तेरा है...
भाटिया जी बोल्ले, यू मेरा कान कोनी..
ताऊ फेर बोल्या, रै भाटिया जी, यू कान तेरा है..
भाटिया जी बोल्ले, यू मेरा कान कोनी..
ताऊ गुस्से मैं बोल्या, रै भाटिया जी, तू कैसे कह्वै के यू कान तेरा कोनी,,,???
भाटिया जी बोल्या, रै ताऊ, इस कान पै बीड़ी कोनी टंगरी.... इस वास्तै कहूं सूं.... यू मेरा कान कोनी.....
खुशदीप सहगल said... अदा जी,
बधाई, आपके एक-एक शब्द की विवेचना करने वाला मिल गया है महफूज़...
महफूज़ मियां...सारी तारीफ आप ही कर दोगे तो हम क्या भुट्टे भूनेंगे...
जय हिंद...November 21, 2009 7:37 PM
ऐसे 42 या उससे भी अधिक राष्ट्रीय प्रतीक हो सकते हैं ... जिनपर हम गर्व कर सकते है !!
अल्पना वर्मा ने कहा… राष्ट्रीय मिठाई- जलेबी..:) kya baat hai!
yah to anoothi jaankari hai.November 22, 2009 2:18 PM
शरद कोकास said... धन्यवाद डॉ. साहब और समीर भाई को भी बहुत बहुत बधाई । यह पोस्ट पढ़कर याद आया कि चेन्नई मे गोल्डन बीच पर एक व्यक्ति प्राचीन दक्षिण के राजाओं की वेष्भूषा मे इसी तरह बिना हिले डुले मूर्ति की तरह खडा रहता है । और एक व्यक्ति और है जो सिल्वर कलर पोतकर गान्धीजी बनकर ऐसे ही चौराहों पर खड़ा रहता है ..हमारे देश में भी ऐसे कलाकार हैं । हाँलाकि असली नेताओं के आगे कहाँ लगते है बेचारे .. ।
November 22, 2009 1:20 AM
नहीं भूलेगी वो कैटिल क्लास की मानवता !(यात्रा वृत्तांत -अंतिम भाग)
बी एस पाबला said... ब्लॉग पर तो आते नहीं स्टेशन तक क्या आयेगें
:-)
कहने को ही कैटिल क्लास है ,यहाँ तो मानवता के कूट कूट के दर्शन हुए
बात बिल्कुल सही है
पिछली पोस्ट्स भी पढ़ता हूँ
बी एस पाबला21 November 2009 05:24
दिल्ली ब्लॉग बैठक में हिन्दी ब्लॉग्गिंग और मीडिया पर चर्चा
काजल कुमार Kajal Kumar ने कहा… शर्त लगा लो,
माल उड़ाने के कोई पैसा नहीं देगाNovember 22, 2009 10:04 AM
मैं हूं "ब्रदर इंडिया"...खुशदीप
Dipak 'Mashal' said... अरे शरद भैया, खुशदीप भैया, शिवम् जी.. ऐसी ख़ुफ़िया मंत्रणाएं सबके सामने नहीं करते... आप बड़े भाई(महफूज़ भाई की तो करिए) क्या पता कोई 'दीदी तेरा देवर दीवाना....' फिर से बन जाये...
जय हिंद...November 22, 2009 5:03 AM
जस्ट टू लाइन, चर्चा हुई फाइन (चिट्ठी चर्चा
- अदा' ने कहा…
-
आपकी टू लाइन्स ने किया फिर चमत्कार....
थैंक यू टू लाइन्स में किया जाए स्वीकार ....- November 22, 2009 5:11 AM
अपुन का नाम मुन्ना भाई एइसेईच नही है…….
श्रीश पाठक 'प्रखर' ने कहा… वाह मुन्ना भाई..सर्किट तेरा बड़ा काम का..बड़ी पढाई करता है..भाभी कहीं उसी पे ना लट्टू हो जाये..!!!
'अदा' ने कहा… आईला...!!!
अपुन का फोटू...!!
क्या मस्त दिखेली है बाप.....
काई रे शानपत्ती.. तेरे को मालूम ....क्या......!!
बोले तो ...तेरा मसखरी बिंदास और चर्चा झकास.... बिडू....!!
dhiru singh {धीरू सिंह} November 22, 2009 4:24 PM कार अच्छी तरह चलाना . और गांव देखना हो तो मेरे पास आना मै तो रहता ही गांव मे ही हूं अधिकतर
'अदा'.....तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है...
rashmi ravija said... अदा जी,आपको पता भी नहीं होगा,कोई आपकी वजह से कितनी डांट खा रहा है और उस बेचारे को भी नहीं पता होगा,उसे इतनी डांट क्यूँ पड़ रही है....वो है मेरा comp eng .मेरे लैपटॉप का साउंड सिस्टम काम नहीं कर रहा था और मुझे आपका गाना सुनना था....अब जाकर तसल्ली से सारे गाने सुने....आपके गले में तो सरस्वती का वास है,बहुत ही सुमधुरता से गाया है.
November 22, 2009 12:06 AM
पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ (पानू खोलिया)-१
वाणी गीत says:
November 23, 2009 7:13 AMबन ही जाते हैं--आप के गृहदाह के अंगारे
मेरी अँगीठी की आँच बन ही जाते हैं
-- महकदार,
-- दहकदार ।
दह्कदार तो समझ आया ...मगर महकदार भी ....किसी गृहदाह के अंगारे महकदार भी हो सकते है भला ..??....गृहदाह उपन्यास याद हो आया ..
Arvind Mishra says:
November 22, 2009 8:04 AMयह एक संचेतना ही तो है जो अखिल ब्रह्माण्ड को आप्लावित किये हुए हैं भले ही वह हमारे अंतरतम के अंतरतम के अंतरतम में कहीं गहरे धसी हो मगर है तो जरूर ही ! और उसे पहचानना ही उन्मुक्त हो जाना है ,निर्वाण का परम पद प्राप्त कर लेना है -और यही अकुलाहट इस काव्याख्यान में सहज ही अनुभूत है !
और महराज,जब घोर वितृष्णा उपजा देने वाली कोई प्रस्तुति हुनर में ऐसी बेजोड़ हो जाय की डराने सी लग जाय तो कोई क्या कहेगा ? बंद कीजिये यह ,प्लीज बंद कीजिये ! खुद साधक के लिए भी ! आप और अभी से यह वैराग्य राग ! कम से कम अपने जीते जी तो मैं ऐसा नहीं करने/होने दूंगा हिमाशु आप के लिए ! एतदर्थ ही था वह आर्तनाद !
"फिल वक्त" महेन्द्र 'नेह' की एक कविता 'थिरक उठेगी धरती से'
सर्किट, 23 November, 2009 3:46 PM बहुत बधाई.
मुन्ना भाई ब्लाग चर्चा मे आपका इंतजार कर रयेले हैं. जल्दीईच पधारने का और आपकी राय भी देने का.
मैं आपका इंतजार कर रयेला है. आप आयेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा ना.
दिगम्बर नासवा said... तुम्हारे उस
ड्रेसिंग टेबल के आइने पर
जमी धूल की मोटी गर्त,
इस डर से कि कही,
तुम्हारे माथे की
वह एक बिंदिया,
जो शायद तुम भूल बस,
आइने पे ही
चिपकी छोड गई थी...
PYAAR KI GAHRAAIYON SE LIKHI RACHNA HAI ... LAJAWAAB .. KAMAAL KA LIKHA HAINovember 22, 2009 5:24 PM
मुन्ना भाई को ब्लाग बुखार चढ गयेला है : डाँ.झटका
खुशदीप सहगल ने कहा… ए सर्किट,
अपना नंबर मुन्ना भाई को क्यूं दिएला है...क्यूं अपनच कू बिना टिकट ऊपर की फ्लाइट पकड़ेला रे...ये मुन्ना भाई को वाट लगवाने का शौक क्यूं चढ़ेला ए...क्या गुड मार्निंग इंडिया वाला मैडम किसी ओर के साथ फुर्रेला हो लिया क्या...वैसे बाप इधर मुन्ना भाई का एक सालिड मैच ढूढेला ए...मुन्नी मेंटेन....क्या बमचिक आइटम है बाप...इलाके में मुन्नी मेंटेन का क्राइम ग्राफ सबसे टॉप पर है बॉस...मुन्नी मेंटन बस मुन्ना भाई के फोटा का डिमांड किएला है...कोई रपचिक फोटू भेज रे सर्किट...वो फोटू मत भेजेला जो इलाके के बच्चे को डराने के काम आइला ए...
चलता हूं बाप...कई कुंआरा टपोरी मैरिज ब्यूरो के दरवाजे पर नॉक करेला ए...
जय हिंद...
चिठ्ठी चर्चा - तब ऐसे में मैं खुश होकर बस प्यार की झप्पी लेता हूँ..
- Udan Tashtari ने कहा…
-
बहुत उम्दा चर्चा...हमारी तो पूरी कविता ही फिर से आ गयी..आभार इस स्नेह के लिए. :)
- 22/11/09
आखिर फाँस ही लिया हमने रामबाबू सिंह को हिंदी ब्लोगिंग जाल में
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said... on November 22, 2009 5:48 PM कल से रामबाबू भी हिंदी ब्लोग्स को पाकर एसा महसूस कर रहे है जैसे उन्हें कोई खजाना मिल गया हो और पढने में मशगूल है उनकी इस तरह की रूचि देखकर मुझे लगता है कि वे भी अब हमारी तरह हिंदी ब्लोगिंग में उलझे ही रहेंगे और नियमित पढ़ते व लिखते रहेंगे | बस उन्हें थोड़ी सी जरुरत है आपके टिप्पणियों रूपी प्रोत्साहन की |
लो भाई कर रहे हैं टिप्पणी!
NICE.
सच्चा प्यार चाहिए या नानवेज जोक..... ड़ाल करें ....
जी.के. अवधिया said... लोगों के जेब से उनकी गाढ़ी कमाई के पैसे निकालने के लिये कुछ भी किया जा सकता है इस देश में।
बड़ी बड़ी कंपनियाँ हैं ये, सभी राजनीतिक पार्टियों को मोटी रकम चंदे में देती हैं, भला कौन रोक सकता है इन्हें?November 22, 2009 4:17 PM
पी.सी.गोदियाल ने कहा… जनमन; अपनी श्लाघ्य चेतना की पूंजी ले
किन्तु बीत जाता है वह क्षण..| {अतृप्त खोज जारी रहती है}
जिसको कोई जी जाता है पागलपन में
वह जीवन है..सुन्दतम है..!
वाकई उम्दा रचना, त्रिपाठी जी को बधाई !November 22, 2009 9:24 PM
रंग रूप और ये काया ,हे! ताऊ ये तेरी माया
अजय कुमार झा ने कहा… ताऊ को हाफ़ सेंचुरी मुबारक हो ..खुशी में ताऊ की मूंछें सांड सी हो रही हैं ..पहेली को ब्लोग्गिंग में इतना लोकप्रिय बनाने वाले ..ताऊ ही हैं ये भी कमाल रहा ..एक महाताउ पके पकाए....दूसरे अभी कच्च अंबिया से हैं बहरहाल सबको बधाई ...
गिरिजेश राव said... भैया, अल्लसुबह चौंका गए। हम लोगों के निकलते ही पोस्ट ठेलन के जुगाड़ में लग गए थे शायद।
इत्ती भारी भारी बड़ी बड़ी बातें कह गए हैं कि कभी अपने को कभी जाने किस किस को देखते हैं।
अरे, सेलीब्रटी वग़ैरह हम जैसे क्या खा कर बनेंगे जो बाहर तो बाहर अन्दर और यहाँ तक कि सोच में भी नुक़्ता चीं की गुंजाइश ढूढ़ते रहते हैं। प्रभुता तो हम जैसों के पैरलल ट्रैक पर चलती है - मतबल कि दुन्नों कभी नहीं मिलने वाले। हम तो ऐसे ही भोजपुरिया सोझवा टाइप रहेंगे। सुकून रहता है।
आप के स्नेह से सभी लोग अभिभूत हो गए। भाभी जी और कौस्तुभ से मिलना सुखद रहा। आत्मीयता और सहजता छू क्या झपिया गए।
नेट और ब्लॉगिंग की खासियत यही है कि समान तरह के लोगों को भौगोलिक या किसी भी तरह की सीमा से मुक्त कर जोड़ देते हैं। मैंने कब सोचा था कि बस टिप्पणियों के सहारे ऐसा अपनापन जुट जाएगा? भाई बन्धु ब्लॉगिंग के तार पकड़ अमेरिका से फोन करने लगें तो पता चलता है कि दुनिया छोटी हो गई है।
शायद यह छुटपन अंतर की छुटपन को छोटा करते करते एक दिन समाप्त कर देगा, यह मेरा आशावाद है।
______________________________
श्रीमती जी का एक्स्पर्ट कमेंट - भाई साहब बहुत लिखने पढ़ने वाले हैं। भाभी जी मेरी तरह सीधी(आत्मप्रशंसा !) हैं न, वक्त बेवक्त की कलम घिसाई पर रोकती नहीं होंगी। अब ये मेरे उपर कटाक्ष था लेकिन मैं सोच में पढ़ गया। क्या वाकई पढ़्ने लिखने, छ्पने छपाने वालों के अर्धांग को सीधा(!) होना चाहिए? ब्लॉगिंग करने वालों के साथ भी ऐसा होना चाहिए क्या? मतलब कि पत्नी ब्लॉगर तो पति सीधे और पति ब्लॉगर तो पत्नी सीधे ! इस सीधेपन ने तो सोच में डाल दिया भैया।22 November 2009 19:25
अबे कितनी बार कहा है झंडा मत बोले कर
संजय बेंगाणी ने कहा… झण्डे का मतलब क्या तिरंगा झण्डा ही होता है? :) मित्र को अभिव्यक्ति की आजादी मिलनी चाहिए :)
NOVEMBER 23, 2009 10:50 AM
सामने है बीयर और समीर जी …मे बी ईन फ़ीयर (चर्चा हिन्दी चिट्ठो की )
बवाल said... @ November 23, 2009 8:08 PM पंकज जी,
बहुत बहुत आनंददायी चर्चा की आपने। पर ये बतलाएँ कि इस चर्चा में झलकने वाला अपनापन आप कहाँ से लाए ?
Devendra said... पहले तो सब्ज़ बाग़ दिखाया गया मुझे
फिर खुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे
रक्खे थे उसने सारे स्विच अपने हाथ में
बे वक़्त ही जलाया, बुझाया गया मुझे
पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे
---डा० शाहिद मीर का नाम तो सुना था लेकिन परिचय से अनजान था
....हमेशा की तरह एक नायाब तोहफा, धन्यवाद।November 23, 2009 9:11 PM
फिर सनक गया दिमाग कार्टून बनाने को....
cmpershad said... ट्वींकल-ट्वींकल औल द नाईट
जीरो वाट की धुमली लाईट
जब ले रहे थे सपनों की फ़्लाइट
पत्नी ने ली क्लास लेफ़्ट एण्ड राइट
जब खुली नींद एट ट्विलाइट :)November 22, 2009 11:43 PM
रंग रूप और ये काया ,हे! ताऊ ये तेरी माया …सर्किट बोल रयेला
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi ने कहा… चर्चा मुन्ना भाई की एक दम मस्त-मस्त है। मैं तो इतने दिन इस से वंचित ही रहा। वास्तव में इस बीच बाहर रहने और आते ही काम में उलझ जाने का दंड भुगता है। पर आज सब पोस्टें एक साथ देख ली हैं। अब न चूकेंगे इसे। जितनी चर्चाएं होंगी उतना लोगों को अधिक ब्लाग पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा।
उत्तम प्रयास है,एक दम परिपक्व आरंभ भी।
रंग रूप और ये काया ,हे! ताऊ ये तेरी माया …सर्किट बोल रयेला
ऐ सर्केश्वर, |
क्या सर्किट...बिना मच्छर भगाये भाग गया चर्चा करने और यहाँ अभी तक एक एक पकड़ कर निकाल रहे हैं...मच्छर हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे. |
क्या चर्चा का आइटम पे आइटम दिए जाइला रे बाप...फुलटू मस्त...मुन्नी मेंटेन एक को टपकाने के चक्कर में तिहाड़ में है रे बिंदास...मुन्ना भाई से कहने का...किसी कू टपकाने का...तिहाड़ जाने का...वही वन टू वन मुलाकात करने का... |
खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (122) : रामप्यारी
सुनीता शानू said... सबको राम-राम अरे उस आदमी को करने दीजिये न जो कर रहा है। बेचारा कुछ तो कर ही रहा होगा। और सुनाईये सब लोग कैसे हैं? क्या हाल चाल है। छः बजते ही ताऊ की चौपाल लग जाती है। अब लस्सी पिओगे या चाय?
मुझे लगता है वो सड़क पर गिरा हुआ सफ़ेदे का पेड़ हटाने में मदद कर रहा है बस...:)23 NOVEMBER 2009 18:24
संगीता पुरी said... सबका जबाब सही है .. बांस के ऊपर एक हंसिया है .. जिससे नारियल टूटती जाती है .. बांस के नीचे एक नेट है जिसमें मछली फंसती जाती है .. और उसी बांस से आदमी नाव भी चला रहा है .. हो गए न तीनों काम एक साथ .. अब रामप्यारी किसे सही मानेगी .. वह रामप्यारी पर निर्भर है !!
23 NOVEMBER 2009 18:14
इत्ती दूर से आये हैं, कुछ तो ख्याल कीजिए
विनोद कुमार पांडेय ने कहा… एक सुंदर संस्मरण की बेहतरीन प्रस्तुति .जज बनने का बड़ा अच्छा अनुभव आपने प्रस्तुत किया..रही बात पुरुष जज की तो अब ये भी क्या करे कोई नंबर लूटा रहा है तो इन्हे तो संभाल कर ही देना पड़ेगा ना..समस्त विवरण का एक खास अंदाज बहुत बढ़िया लगा..धन्यवाद
Monday, November 23, 2009 10:48:00 PM
ब्लौग बैठक में हुई सकारात्मक और नकारात्मक लेखन पर चर्चा
रंजन ने कहा… सकारात्मक लेखन गति पकडे़ और नकारात्मक लेखन बंद हो.. ये दुआ करते है..
November 23, 2009 9:37 PM
काश एक बार वो फिर मिल जाती....
Anil Pusadkar ने कहा… मार खाये गा ना बे,बहुरानी के हाथ अगर डायरी लग गई तो बचेगा नही,गुनाह के सारे सबूत साथ मे ही रखे हुये है।हा हा हा…………।राजकुमार याने तू शुरू से ही रोमांटिक था,डाऊट तो होता था मगर तब ये डायरी का पता नही था।यादें ही तो इंसान का सबसे अनमोल खज़ाना है राजकुमार्।
NOVEMBER 24, 2009 10:09 AM
मायूस होना अच्छा लगता है क्या?
अजय कुमार झा ने कहा… हम तो जानिये रहे थे कि ....एलियन जभीए ऊ छोटका बाल्टी मैं बैठ के बीयर स्काच उडा रहे थे .......ई अब सब लोगन को सेंटी कर देंगे ...और करिये दिए न ...हम तो कहते हैं कि आपको खूबे याद अए अपने घर का ...इसी बहाने भारत आ जाएंगे .....बचवन को कह दिये हैं कि जल्दीए ...उडनतशतरी का सवारी कराएंगे ...बुलबुल पूछ रही थी ....कि दिल्ली मेट्रो से ज्यादा मजा आएगा .....हम का कहते बताईए तो ..
अजय कुमार झा11/24/2009 07:09:00 पूर्वाह्न
अऊर अब अंत मा हम ई कहत हैं कि बच्च लोग कभी किसी को दुख मत दो…क्या पता कब कौन टेढा मेढा चच्चा फ़ंस जाये ? यानि कि रस्सी समझके सांप ऊठाने का रिस्क काहे लेत हो? अब शुकुल जी ऊ रोज झा जी के ब्लाग पर टिप्पणी करके आये रहे कि अगर झा जी …चच्चा नही है तो शुकुल जी को बडा खुशी होगा?
मैं पूछता हूं शुकुल जी आपको काहे से खुशी होगा? अरे चच्चा टिप्पू कौनू अछूत है का? आपको ई पता नाही है कि कौन बात बोले का है और कौन नाही? जरा गुस्से को काबू रखा जाये शुकुल महराज….फ़िर आप पूछे रहे ऊंहीं पर कि आपको चच्चा का इमेलवा कहीं नाही दिखत है?
तो हम आपको बता रहा हूं कि जैसन जी मेल आपका डाक शुकुल की डाक पहुंचाये का कोनू पैसवा नाही लेत है वैसन ही टिप्पू की डाक पहुंचाये का भी कोनू पैसा नाही लेत है…
हमको बडा ताज्जूब है कि आपको चच्चा की मेल का पता तक नाही है? अरे ई जेतना बच्चा लोग ईहां आवत है उन सबका मालूम है की जी मेल पर टिप्पूकीडाक (tippukidak@gmail.com) लिखो और चच्चा तक संदेश पहुंचाओ.
शुकुल जी आप ई त जानबे ही करते होंगे कि ई अगरुरवा मगरुरवा ने जेतना लोगों से ई कहा कि टिप्पू चच्चा के ब्लाग पर नाही जाये का ऊ सब लोगन हमको मेल किये हैं कि चच्चा हमरा नाम नाही लेने का पर अगरुरवा मगरुरवा लोग आपका खिलाफ़ ऐसा दुष्प्रचार करत हैं… तो हम कहा कि हमको का फ़र्क पडत है? ई सब तो कायर लोगन का काम है..जो किसी को भी गाली देकर गली मा घुस जात हैं.. अरे हम किसी का दिल दुखाया नाही..किसी को गाली दिया नाही….दुसरों को दुख देने वाला अऊर गाली देने वाला ही ऐसा काम कर सकत है.
अऊर सुनलो आप शुकुल जी और अगरुरवा मगरुरवा….हम बिना हिसाब किताब पूरा किये तुम्हारा पीछा नाही छोडूंगा….मर गया त मेरा भूत तुमसे बदला लेगा….अभी हम आठ दिन नाही दिखा तो आप लोग बहुते राजी हो रहे हैं कि चच्चा तो मर गईल?
हमको मेल मा सब खबर मिल गई कि अगरुरवा मगरुरवा कैसे लोगों को कहते फ़िर रहे हैं कि चच्चा तो दिवंगत हुई गये? बहुत शौक लगा है ई मगरुरवा को हमका दिवंगत करे खातिर? अऊर मजा का बात देखा जाये कि ये जिस भी किसी को बोलता है ऊ ऐसा का ऐसा हमका बता देत है....अगरुरवा मगरुरवा एइसन कहत रहे।
अरे चच्चा ऊ चीज नाही जो इतना आसानी से मर जाईब? चच्चा को तो पहले मौत भी पूछेगी कि चच्चा कब आऊं?
शुकुल जी, हमको मेल करके सब बच्चा लोग बराबर खबर देते हैं कि कहां क्या हो रहा है? अगरुरवा मगरुरवा कहां गुल खिलाये हैं? बस ,,एक ही बात..हम शांति से रहना जानते हैं अऊर अगर कोई हमारी शांति भंग करे त उसकी….शांति भी उसके साथ नाही रह सकत….
हमारा त एक ही कहना है टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……टिप्पणी हटाओ शुकुल जी महराज….हम ऐसन ही चुप नाही बैठूंगा……
हां तो बच्चा लोग अब चच्चा की टिप टिप…अऊर ताली बजाओ….घर जावो…आप लोगन ने हमको जो मेल मे खबर भेजी है उस पर हम कार्रवाई कर रहा हूं…आप हमका मेल भेजते रहिये….आपका मेल बिल्कुल ई गुप्त रहेगा…हम किसी का मेल अपने जीते जी सार्वजनिक नाही करुंगा…आप चच्चा पर विश्वास रखिये…..आप सब लोगन ने मेल करके हमारी तबियत का हालचाल पूछा त हम आप सबका आभारी हूं अऊर हमार तबियत अब बिल्कुले झकास हो गई है…कोनू परेशानी नाही बा….
अऊर चिता नाही करे का..ई अगरुरवा मगरुरवा से हिसाब बराबर किये बगैर चच्चा कहीं नही जायेगा..बस आप पहले की तरह ही हमको इनकी जानकारी मेल मे देते रहिये….अच्छा बच्चा लोग मैं अबकि जल्दी ही मिलूंगा…..चच्चा की तरफ़ से टिप… टिप….
बहुत खूब, विस्तृत, काफी लम्बी चर्चा , शुक्रिया !
कहां कहां से ढूंढकर इतनी सुदर टिप्पणियां ले आए .. बहुत बहुत धन्यवाद !!
सारी टिप्पणियों को पढ़ना, इकट्ठा करना और फिर चर्चा करना! कमाल का काम करते हैं आप!!
उरी बाबा, पोढते-पोढते थाक गीया। कीतना लोम्बा लीखा, कहां से खूज-खूज के लाया। ईतना मेहनात, भोगवान, ना रे ब्लागार लोग फोल देगा।
अमेज़िंग।
बढ़िया
इस बार भी बहुत मेहनत की है आपने खांसते खांसते :-)
बी एस पाबला
चच्चा!! जरा जाड़ा में गरम कपड़वा पहिन कर निकला जाये टोपा टोपी लगा कर. ओउर ई दिवंगत होने की बात न किया किजिये...दिल बैठने लगता है. अभी कौनो उमर में है का दिवंगत होने की. दिवंगत होऎं आपके दुश्मन..आप काहे.
एतन मेहनत देखकर तो कईयो युवा ठठरा जायें-लगेंगे च्यवनप्राश खाने तोन पर एतन ताकत जुटाना मुश्किले समझो.
गजब मेहनत किये हो चच्चा!! जय हो चच्चा की!! लॉग लिव, चच्चा!!
ठंड में जरा टॉनिक वॉनिक भी लिया जाये! :)
फिर इन्तजार करेंगे अगली टिप्पणीचर्चा का.
बहुत बढ़िया चर्चा टिप्पूसिःह जी, गजब की टिप्पणी चर्चा कमाल कर दिया जरा मेरी भी फोटोवा लगा दें
चच्चा आज तो सही मे कमाल कर दिये हो आप. इतना लंबा चर्चा..आपने तो पूरे सप्ताह भर की कसर पूरी कर दी. ये टिप्पणियां तो पढी ही नही थी..
चच्चा तबियत का ध्यान रखिये...आप स्वस्थ रहें और चिरायू हों..और बच्चों को यूं ही समझाईश देते रहे..आपने इमेल एडरेस आज सार्वजनिक कर दिया..ये अच्छा किया अब आपसे संपर्क जीवंत बनाने मे आसानी रहेगी.
बहुत २ शुभकामनाएं.
रामराम
अच्छी चर्चा ...
लोगों की आँखें इतनी उत्सकता से शायद ही कोई
ब्लॉग देखतीं होंगी ... ! ...
अपनी कहूँ तो ---
'' जैसा ही सही , मेरी तरफ जाम तो आया ...''
बहुत मेहनत से इकट्ठी की हैं टिप्पणियां...बहुत लुत्फ़ आया पढ़कर.
चर्चा बहुत एक्सक्लूसिव है। आनंद आया।
चच्चा कई दिनों बाद आये ,पर कोई बात नहीं आज टिप्पणी चर्चा की पूरी कसर निकाल दी |
और यह इतनी बड़ी चर्चा देखकर लगता है चच्चा बिल्कुल तंदुरुस्त है | बुढ़ापा आये चच्चा के दुश्मनों को |
मस्त मस्त वेलकम वेलकम चचा !
चच्चा टिप्पू सिहं और उनकी टिप्पणी चर्चा का कहीं कोई जवाब है तो पेश किया जाए। हा हा । बहुत ख़ूब चचा।
चच्चा टिप्पू सिहं और उनकी टिप्पणी चर्चा का कहीं कोई जवाब है तो पेश किया जाए। हा हा । बहुत ख़ूब चचा।
एकदम धाँसू चर्चा....
वैसे हम इतना तो जान ही गये हैं कि चच्चा इत्ती जल्दी हार मानने वालों में से नहीं है...
खूब प्रतीक्षा रहती है इस चर्चा की । शानदार चर्चा । आभार ।
चाचा जी,
प्रणाम,
भगवान आपको लम्बी उम्र दे....आपकी टिपण्णी चर्चा का इंतज़ार में बैठाल रहते हैं हम सब....बहुत बढ़िया रहा चर्चा......आपका मेहनत सार्थक हुआ है....अपना ख्याल राखाल जावे और अच्छा-अच्छा बात सोचल जावे...बस......
चच्चा की चर्चा, बाकी सब चम्मच, यही है कड़छा...
जय हिंद...
टिप्पणियों में ही तो ब्लागिरी की रूह बसती है..और इस रूहों के मेले में आके बड़ी ही मस्ती बड़ा ही सुकून मिलता है..!!!
टिप्पणी पर टिप्पणी करूँ आया नेक खयाल।
संग्रह टिप्पणी की भली कोशिश बहुत कमाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
चच्चा मजा आ गया पढ़कर ! हम तो पहली बार आया हूँ अभी ब्लोगिंग में रतन सिंह जी ने नया नया फांसा है लेकिन फंस कर मजा आ रहा है | अब यहाँ आना जाना लगा रहेगा |
चच्चा गोड़ लागी, ठंडा बढ गया है तनि सेहत का ख्याल रखें-कोट सुटर गुलीबंद धारण करें और उसके बाद टिपणी चर्चा पर तैनात रहें, एक सप्ताह का विलंब बहुत हो जाता है। शुभकामनाएं
चच्चा! टेशन लेने का नही टेशन देने का ! मुन्न्नाभाई को बोलने का .......
टिप्पणी चर्चा सुन्दर लगी.
धन्यवाद.
चचा सलाम,
किबला अपनी सेहत का ख़्याल रखा करें
आपकी चर्चा तो चौंचक है ही, और... आपके मँसूबे भी,
अल्लाह ऎसे नेकदिल ज़ेहाद को क़ामयाबी बख़्शे !
मिशन मुबारक़ !