हां तो अब आज चच्चा फ़िर आगये कुछ टिप्पणियों का गुलदस्ता लेके, पर टिप टिप तो कर ल्यो .. आज हम अऊर कुछ बात नाही करुंगा... अब जो जो तमाशा हुआ रहा अऊर हो रहा है ऊ सब तो आप लोग देख ही रहे हैं...त अब आज की सीधी चर्चा शुरु करते हैं..
'रीढ़ की हड्डी' है कि नहीं ....??
shikha varshney said...अरे छोड़िये अदा जी ! क्या सवाल ले बैठीं आप भी " रीड़ की हड्डी ही नहीं है.?..ये भी कोई सवाल हुआ भला?.....अरे छोड़िये कोहिनूर और लूटा हुआ खजाना ....वो अपने इतिहास की किताबों में खुले आम हमारे शिवाजी को बहशी लुटेरा ,अपनी ही माँ बहनों की इज्जत लुटने वाला और..भगत सिंह को आतंकवादी कहते हैं ...तब हमारा स्वाभिमान नहीं जागता....तो इन चापलूसों को राजनीति में उनके तलुबे चाटने में क्या बुरा लगेगा.
November 2, 2009 5:06 AM
क्या मेरी टिप्पणियां आपको कष्ट पहुंचाती हैं.....?
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" ने कहा…
सच पूछे तो हमें तो आपकी भाषा और हास्यात्मक शैली बढिया लगती है.....हमें नहीं लगता कि किसी को आपकी टिप्पणी कष्टदायी लगती होगी...खैर आप जारी रखिए !
अगर किसी को कष्ट हो रहा हो तो आप उसके हिस्से की टिप्पणियाँ हमारे ब्लाग पर कर दिया करें :)
November 1, 2009 11:46 PM
बी एस पाबला ने कहा…
अजय जी, फिल्म बैराग का वह गीत याद है ना आपको?
पीते पीते कभी-कभी यूं जाम बदल जाते हैं
अरे काम बदल जाते हैं, लोगों के नाम बदल जाते हैं
यहाँ से वहाँ तक जाने में, वहाँ से यहाँ तक आने में लोग ये कहते हैं जी
बंद लिफ़ाफ़े में भी, दिल के पैग़ाम बदल जाते हैं
और क्या कहूँ!?
November 2, 2009 12:26 AM
Udan Tashtari ने कहा…
एलियन बोलते हो और फिर पूछते हो महाराज??? हा हा!! हमें तो एलियन सुनकर मजा आता है...किसी को आये न आये.
रामप्यारी भी कह रही थी कि उसे बिल्लन कहते हैं प्यार से अजय अंकल ...वो भी खुश लग रही थी..
फिर कौन डाऊट पाल लिए हो??
November 2, 2009 5:33 AM
'अदा' ने कहा…
केतना दिन से तो टिपण्णी नहीं दिए हैं और बात कर रहे हैं.....बड़का-बड़का ....
बढियां बहाना ढूंढ़ लिए हैं आप नहीं टिपियाने का का ???
इ पोस्ट-उस्ट नहीं चलेगा..... हाँ ....कह दे रहे हैं...... !!!
November 2, 2009 5:05 PM
अपंग और कमाने में असमर्थ पति को भी पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता मांगने पर साबित करना होगा कि वह पर्याप्त साधनों वाला व्यक्ति नहीं रहा है
अजय कुमार झा, 2 November, 2009 2:11 PM हां ये संदेह बहुतों को रहता है कि यदि वे कुछ कमाते धमाते ही न हों तो पत्नी के गुजारे भत्ते वाले दायित्व से बचा जा सकता है...आज आपने सारी स्थिति स्पष्ट कर दी है..धन्यवाद। |
संतोषी भला कि महत्वाकांक्षी...?
वाणी गीत said... संतोषम परम सुखं ...मगर महत्वाकांक्षा न हो तो विकास यात्रा ही रुक जाये ...उम्दा सोच ...यहाँ तो गीता का श्लोक ही कारगर रहेगा ... कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन ..!! November 2, 2009 5:22 AM |
"छुट्टी है तो कुछ हँसी हो जाए" (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की )
अविनाश वाचस्पति said... @ November 2, 2009 9:28 PM छुट्टी हो या बेछुट्टी हंसी सदा रहनी चाहिए हास्य की गंगा तो सदा बहती रहनी चाहिए हंसने से मन के सभी फूल खिल जाते हैं ओठों के भीतर से दांत सभी निकल आते हैं उन दांतों से ही हम दुख को चबा जाते हैं जीभ को बचाते और दांत खूब चलाते हैं हंसने हंसाने से कभी नहीं शरमाते हैं दुख में भी कभी नहीं गरमाते हैं। |
शरद-स्वरूप
M VERMA said... यह किस्मत की बात नहीं है कारक जर्जर तंत्र। सर्वे भवन्तु सुखिनः का हम भूल गए क्यों मंत्र।। वाह -- वाह क्या कहने. कितना करीबी रचना लिखा है आज आपने. बिलकुल यथार्थ November 1, 2009 9:12 PM |
आगे ममता है पीछे सोनिया खड़ी है यार फँस गए मन्नू दो लुगाइयों के बीच में
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें
पंकज सुबीर said... प्यार बासी हमारा न होगा अगर हम बुलाते रहें वो लजाते रहें इस शेर को पढ़ कर एक गीत याद आता है और बहुत ही शिद्दत से याद आता है ए मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नहीं । आपका ये ग़ज़ल रूपी बम एन दीपावली के दिन ही फूटा था और उसकी धमक देर तक मेहसूस की जाती रही थी । फिर भी मैं तो एक ही शेर के आनंद में डूबा हूं कि हम बुलाते रहें वो लजाते रहें । अहा अहा अहा । हालंकि इस शेर का मजा लेने की उम्र अभी नहीं आई है लंकिन अगर ये मजा दे रहा है तो इसका मतलब ये है कि शेर में दम है । सुंदर रचना सुंदर शेर सुंदर शायर सबको बधाई । November 2, 2009 7:13 PM |
"अर्श" said... उस्ताद शईरों की गज़लें जीतनी बार पढ़ी जाये मन नहीं भरता... क्या करूँ बरबस जब सुबह ब्लॉग पे आया तो आपकी ग़ज़ल हाथ लगी और दिल वाह वाह कह उठा... हर शे'र उस्तादाना ... गिरह कैसे लगाते है यही पढ़ के होश गम है,... दूसरा शे'र और तीसरे में क्या खूब नजाकत देखने को मिल रहा है ... प्यार बासी हमारा न ... इस शे'र से अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा हूँ , आपके ब्लॉग पे फिर से इस जगमगाती दिवाली वाली ग़ज़ल को पढ़ सुखद अनुभूति एक एहसास हो रहा है ... बहुत बहुत बधाई लुत्फ़ की टाइपिंग मिस्टेक है शायद... सलाम, आपका अर्श November 2, 2009 3:04 PM |
हमारी ललनाओं की छाती पर अपनी कुत्सित नंगी जांघें दिखाने की दु:शासनी वासना को धिक्कार
November 02, 2009 11:37 AM डा० अमर कुमार वाहे गुरु सतनाम, सतनाम वाहे गुरु ! निःसँदेह डा. वाच्क्नवी सदैव की भाँति एक तथ्यपूर्ण एवँ तर्कपूर्ण वज़नदार परिचर्चा लेकर आयी हैं । पर, न जाने क्यों एक चुलबुली यौनिक शीर्षक इसके माथे पर चस्पॉ कर दिया ! पूरी चर्चा पढ़ने के दौरान इस शीर्षक की नँगी जाँघें ही दिमाग पर हावी रही ! इसे चुनने के मोह का सँवरण किया जा सकता था ।
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November 02, 2009 2:43 PMAlbelaKhatri.com ये क्या ? दिखाने को सांप और अजगर .......... बेचने को दन्त मन्जन............... सांप और अजगर मन्जन करते हैं क्या ? ______________मैं इस पोस्ट के अत्यन्त घटिया, वाहियात और अश्लील शीर्षक का घोर समर्थन करता हूँ......इसे बदला जाए । इस शाब्दिक और सांकेतिक अंग प्रदर्शन की कोई ज़रूरत नहीं है । चर्चा में दम होगा तो पाठक वैसे ही आ जायेंगे जबकि मैं सिर्फ़ इस शीर्षक को देख कर कौतूहलवश आया हूँ और मुझे निराशा हुई क्योंकि बाहर बोर्ड कुछ और है, अन्दर माल कुछ और है । इस से अधिक विनम्र निवेदन मैं कर नहीं सकता । ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे ! -अलबेला खत्री |
November 02, 2009 3:54 PM विवेक सिंह यह चर्चा देखकर अन्दर का आशुकवि मचल गया : जदपि शीर्षक रद्दी फिर भी, चर्चा यह गहरी है । अनुभव दिया उड़ेल बैठकर, लण्डन बीच करी है ॥
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November 02, 2009 4:56 PM Arvind Mishra कोई और तो आपके नामसे प्रेत लेखन नहीं कर रहा कविता जी ! बात समझ नहीं आयी कुछ ! यह आप नहीं हो सकतीं –सचमुच |
November 02, 2009 6:01 PM कविता वाचक्नवी Kavita Vachaknavee क्या खूब कही और क्या दूर की कौड़ी खोजी ! कुछ सप्ताह पूर्व की मेरी चर्चा पर डॉक्टर अमर कुमार जी ने इस आशय की टिप्पणी की थी, कि इस चर्चा ने यह तो सिद्ध कर दिया है कि यह आपके ही कीबोर्ड से निकली है । उस टिप्पणी का निहितार्थ मैंने यह भी लगाया था कि मानो मेरे नाम से की जाने वाली चर्चा कोई और करता है, यह आरोपित किया जा रहा है| माननीय डॉ. अमरकुमार जी, अरविंद जी और रचना से निवेदन है कि मेरा कोई भूत वूत अभी नहीं बना है, क्योंकि मैं सही सलामत जिंदा हूँ (वैसे मरने के बाद भी वह तथाकथित भूत नहीं बनने वाली हूँ क्योंकि चिर शान्ति से मरूँगी), इसलिए मेरे नाम से चर्चा करने या मेरे खाते का सदुपयोग करने का अधिकार मेरे अतिरिक्त किसी को नहीं मिला है| इसलिए तथ्य से हटकर व्यक्तिगत बातें करने जैसा होगा यह | मेरी टिप्पणी की वर्तनी में, वाक्य संरचना में एकाध स्थान पर शब्द का पुनर्प्रयोग देख कर ही इसे भाई आधार पर मुझ से इतर किसी ओर की प्रमाणित कर देना, घोषित कर देना, सचमुच गलत है| किसी शैली वैज्ञानिक को दिखा लीजिए वह भी ऐसी मीमांसा नहीं करेगा | चर्चा मैंने यात्रा में की है| लन्दन में घर पर सिस्टम में बारहा है, किन्तु ग्लासगो में बेटे के लैपटॉप पर गूगल मेल में देवनागरी एक्टीवेट कर के काम चलाया जा रहा है| ऐसे में किसी शब्द के कोपी पेस्ट के समय पुनरावृत्ति होने को ओरिजिनल न होने का प्रमाणपत्र देना बड़ा ही औचक है| शीर्षक किसी का कोटेशन नहीं है| रचना ! ऐसे शैलीगत प्रयोग को भाषाविज्ञान / समाज भाषाविज्ञान प्रोक्ति कहता है; जिसे "वाक्य पदीयम्" ने `महावाक्य' की संज्ञा दी है | किसी सच्चे और खरे भाषा-वैज्ञानिक / शैली वैज्ञानिक से पूरी जानकारी मिल सकती है| अनूप जी या चर्चाकार मंडली का समवेत निर्णय यदि शीर्षक के औचित्य को आधारहीन पता है तो वे इसे बदलने में स्वतंत्र हैं| वैसे, बंधुओ ! ऐसी कोई भी चर्चा कम से कम ऐसे हथकंडों की मोहताज नहीं कि उसे चौंकाने वाले शीर्षक को आरोपित करना पड़े ( हाँ, बड़े सरोकारों के लिए मारक शीर्षक अधिक उपयोगी होते हैं; मार्क और चौकाने वाला दोनों अलग चीज हैं) | हजार `सही है', `बढिया है' की अपेक्षा एक भी व्यक्ति यदि इसमें निहित पीड़ा तक पहुँच जाता है तो वही बस है |
November 02, 2009 6:32 PM राजेश स्वार्थी आपने अनूप जी या चर्चाकार मंडली से पूछ कर तो यह शीर्षक नहीं रखा होगा, तब इसे बदलने के लिये अनूप जी या चर्चाकार मंडली का समवेत निर्णय किसलिये? क्या अनूप जी या चर्चाकार मंडली चिठाचर्चा के उन पाठकों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई जो सब समवेत स्वर में इसे बदलने को कह रहे हैं। यह सार्वजनिक मंच है। |
इसी पोस्ट से अऊर दो ठॊ टिप्पणी देखा जाये तनि…..
November 02, 2009 8:52 PM Mishra Pankaj @अनुभव दिया उड़ेल बैठकर, लण्डन बीच करी है ॥ क्या भाई लोग अब बताये ज़रा आप सब महानुभाव इसका सही और सार्थक मतलब ...और कोई नहीं तो कम से कम विवेक सिंह जी आप .... |
November 02, 2009 9:44 PM डा० अमर कुमार @ सतीश सक्सेना मुझ पर विदुवान होने का टैग मत लगा मेरे भाई ... केवल कानोंसुनी का ही अनुसरण न करने के अपनी धारणा के चलते, मैं पिछले वर्ष लगभग इन्हीं दिनों मिज़ोरम की यात्रा पर अनायास ही निकल गया था । ( सँभवतः यह चर्चा के पुराने पाठकों को स्मरण भी होगा ) जो मैंनें देखा.. सबसे पहले तो अपने ही देश के उस हिस्से में प्रवेश के लिये परमिट और भी न जाने क्या क्या औपचारिकतायें, उनको राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग करती है । पर यहाँ मुद्दा कुछ और ही है... उनके स्त्रीप्रधान समाज में खुलेपन का स्तर वह नहीं जो हम सोच लेते हैं, साथ ही यह भी सच है कि उनका समाज किसी भी स्तर पर यौनकुँठाओं को साथ लेकर भी नहीं चलता, इन्हें भुनाना या आकर्षण का केन्द्र बनाना तो दूर की बात है । यहाँ पर हमारी उत्तर-भारतीय मान्यतायें दिग्भ्रमित हो जाती हैं । आज का शीर्षक तो अनायास ही यह विषय बन गया, क्योंकि यह डा. कविता के कीबोर्ड :) से उद्धरित की गयी है । किंवा यह भी इसी अवचेतन दिग्भ्रमित लोभ की उपज हो । वह भाषा की डाक्टर हैं, उनसे भला कोई क्यों टकराना चाहेगा ? डाक्टर कविता से शब्दों पर सँयम की अपेक्षा थी, वह मैंने अपने तरीके से व्यक्त कर दिया । वरना, सी.आर.पी.एफ़. के नयी उम्र के ज़वान पश्चिमोत्तर में तैनाती पर एक दूसरे को बधाई और पार्टी देते देखे जा सकते हैं, सो इस चर्चा में ऎसा कोई रस लेने से हमारा मान घटता ही है, तभी मैं यह लिख सका कि, " निःसँदेह डा. वाच्क्नवी सदैव की भाँति एक तथ्यपूर्ण एवँ तर्कपूर्ण वज़नदार परिचर्चा लेकर आयी हैं ।" रही बात दिल्ली की घटनाओं की.. तो यह स्पष्ट कर लेना चाहिये कि कोई इसे यौनहिंसा या यौन-अपराध की श्रेणी से ऊपर उठा कर प्रदेश-विशेष या किसी नस्ल से जुड़े होने की विशिष्टता क्यों देना चाहता है ? यह उसकी व्यवसायिक मज़बूरी हो सकती है । किन्तु एक अव्यवसायिक ब्लॉगर को मीडिया द्वारा परसी हुई हर थाली को लपक नहीं लेना चाहिये । मेरे लिये ब्लॉगर के मायने तिलमिलाहट है, मनोरँजन है, तथ्यपरक सोच है, दस्तावेज़ लेखन है, और भी बहुत कुछ हो सकता है, किन्तु सनसनीपरक ? ना बाबा ना.. क्या मुझे इस बात को भी सनसनी बना देना चाहिये कि, गुरु नानक देव जी के सबद की लाइव प्रस्तुति नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ कर रहे हैं ? नहीं, नेवर.. नॉट एट ऑल, यह उन्हें अपने अलहदा वज़ूद के लिये सोचने को उकसायेगी । बदलो ऑर बदलो नॉट दैट शीर्षक, दैट्स नॉट माई एज़ेण्डा.. पर डाक्टर कविता ने विद्वान होने का जो कद पाया है, उसकी कीमत मेरी इस सूक्ष्म आपत्ति को स्वीकार करने में ही है ।
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ताऊ पहेली - 46 : विजेता शुभम आर्य
Udan Tashtari November 2, 2009 5:42 PM शुभम आर्या जी एवं अन्य सभी विजेताओं को बधाई.. सभी को गुरुनानक देव जी के जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ. आज संजय बैंगाणी जी पहेली और रामप्यारी के सवाल- दोनों में विजेता लिस्ट में दिखे. सहसा विश्वास ही न हुआ. आँख खुशी के मारे छलछला आई. मुझे पूरा विश्वास था कि ’कोशिश करने वालों की हार नहीं होत”, इस पंक्ति को एक दिने मेरा यह भाई चरितार्थ करके दिखायेगा. छाती गर्व से चौड़ी हो गई. विशेष बधाई संजय भाई को
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अंग्रेजी खूनी पंजे
' अदा' said... डॉ.अजित जी, मैं अभीभूत हूँ..कि आपने मुझे समर्थन दिया.... आपके ज्ञान के आगे तो मैं कुछ भी नहीं हूँ.....फिर भी आपने मान दिया...ह्रदय से आभारी हूँ.. इस तरह कि जानकारियां निहायत ही ज़रूरी अब महसूस हो रही हैं.... नई पीढी को असलियत से अवगत कराना अत्यांतावाश्यक हैं... आपकी पोस्ट बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगी जिस तरह के आंकड़े आपने प्रस्तुत किये हैं उस हिसाब से... ये आंकड़े स्पष्ट रूप से आर्थिक ह्रास दिखाते हैं... आपका बहुत बहुत धन्यवाद... स्नेह सहित.. 'अदा' November 2, 2009 7:05 PM |
सरदार पटेल बड़े या वायएसआर रेड्डी ?
जी.के. अवधिया said... सरदार पटेल के विचार गांधी-नेहरू के विचारों से नहीं मिलते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति तथा देश विभाजन के बाद जब पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया था तो उन्होंने पाकिस्तान को 65 करोड़ रुपये देने में भी अड़ंगा लगाया था जो कि गांधी जी के मुस्लिम तथा पाकिस्तान तुष्टिकरण वाले विचारों के विरुद्ध था। अब ऐसे व्यक्ति के लिये भला जगह कैसे नसीब हो सकती है? NOVEMBER 2, 2009 12:15 PM |
आदि ताला कहाँ है..
रामप्यारी का "खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी"
अजय कुमार झा said... बिल्लन लग ली बीमारी तन्ने भी खुल्लम खुल्ला की..जब से बिग बोस में सब खुल्लम खुल्ला चल रिया है..तभी से सारे बिगड लिये...ताऊ का तो कोई कंट्रोल न रहा इस बिल्लन पे...चल रैण दे..एब खेल तो शुरू ही कर दिया तैने..यो तो भैया इक बिलागर है...पोस्ट पर टीप न आ रही हैं..चैक कर रिया है ..इसमें प्लग का कोई फ़ाल्ट तो न है...यो एक कलाई है ..निरे मर्द की..जो प्लग के साथ लगे वायर पे जोर आजमाईश कर रया है...यो क्योशचन जो पूछ लिया होता न अमित जी ने कौन बनेगा करोड पति में..पहला प्रश्न ही...भगवान कसम ..किसी को एक पैसा नहीं देन पडता...देती तो तू भी न है... बिल्लनिया..कल मेरे कान दिखा दियो पहेली में ....बिल्लन कहीं की.. महफ़ूज़ भाई को ठीक फ़ंसाया हा हा हा... 02 NOVEMBER 2009 19:48 |
और अब अंत मे एक टिप्पणी और….
हमारी ललनाओं की छाती पर अपनी कुत्सित नंगी जांघें दिखाने की दु:शासनी वासना को धिक्कार
November 02, 2009 10:40 PM cmpershad "कोई और तो आपके नामसे प्रेत लेखन नहीं कर रहा कविता जी ! बात समझ नहीं आयी कुछ ! यह आप नहीं हो सकतीं -सचमुच" डो. अरविंद मिश्र जी, खेद है कि यह बात आप जैसा विद्वान कह रहा है जो मात्र एक शब्द ‘क्वचिदंतोपि’ से ब्लाग जगत को संस्कृत सिखाना चाहता है। इससे बडा अपमान कविताजी का क्या होगा कि उन के लेखन की क्षमता पर ‘प्रेत लेखन’ का लांछन लगाया जा रहा है।
रचनाजी की बात और है- मुल्ला की दौड़ मसजिद तक... और उन्होंने कविताजी की भाषा पर उससे पूर्व भी टिप्पणी की थी... इसलिए उनकी नासमझी को नज़र अंदाज़ किया जा सकता है। भाई लोग, छाती, नंगी जाघे जैसे शब्दों से आप लोग इतने विचलित हो जाएंगे कि अपनी इस कमज़ोर मानसिकता का इज़हार भी कर देंगे, इस पर आश्चर्य हुआ। शीर्षक देख कर आने वाले भाइयों को तो निराशा होगी ही।
कभी गालिब ने एक महफिल से उठ कर जाते देख लोगों ने पूछा था कि वो क्यों जा रहे है तो उनका जवाब था मैं वहां जा रहा हूं जहां मेरी अशा’र के मायने समझने वाला होगा:) |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा… "हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत. हमारे एक मित्र तो इसी चक्कर में माला पहन कर अगरबत्ती सामने रखकर तस्वीर खिंचवा लिये कि घर में टंगी रहेगी. कोई माला पहनाये न पहनाये, अगरबत्ती जलाये न जलाये, तस्वीर महानता बरकरार रखेगी." बहुत बढ़िया युक्ति बताई है जी! अनुकरणीय है। आज हम भी यही करेंगे और आपके अवलोकनार्थ किसी दिल ब्लॉग पर भी लगा लेंगे। आपका आभार गुरूदेव! बस आप तो नये-नये गुर बतलाते रहा करो। श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और कार्तिक पूर्णिमा की आपको बहुत-बहुत बधाई! 11/02/2009 08:24:00 पूर्वाह्न |
seema gupta ने कहा… किसे पता चलेगा कि इतनी बड़ी उड़नतश्तरी में ये कहाँ लिखा है. किसी का भरोसा तो रहा ही नहीं.. " हा हा हा हा हा हा हा हा हा वैसे ये "भरोसा" होता क्या है ये शब्द अभी भी इस्तेमाल होता है क्या???? बहुत पते की बाते कही है आपने.." regards 11/02/2009 09:05:00 पूर्वाह्न |
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने कहा… बहुत अच्छी समीक्षा है महानता की. जब बुद्धन खान की मौत हुई तो चारों बेवायें और छत्तीसों बेटे कब्रिस्तान के फाटक पर अड़ गए की लाश तब तक दफ़न नहीं होगी जब तक कब्रिस्तान के दरवाज़े पर उनका शेर चस्पा न हो, ऐसी जिद वे अपनी वसीयत में कर गए थे. बड़ा फजीता हुआ मगर आखिरकार पहले शेर लिखा गया और फिर बुद्धन खान अन्दर घुसे. 11/02/2009 06:42:00 अपराह्न |
नीरज गोस्वामी ने कहा… उत्तम विचार है और आपको समय रहते ही कौंध भी गया...वर्ना आपके गो लोक वासी होने के बाद पीछे से लोग क्या पता इन बातों की जगह कुछ और की कोट करते फिरते और आपका नाम होने की बजाये बदनाम हो जाता...आपने जो ये निर्णय लिया है वो आपकी दूर दृष्टि का परिचायक है...आप इसी लिए महान होने के क्रम में सबसे आगे खड़े हैं... आपका ये विचार हम जैसे महान होने की कतार में खड़े व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत्र है...आपकी जय हो. नीरज 11/02/2009 09:51:00 पूर्वाह्न |
गिरिजेश राव said... ये उषा कौन है? ;) _______________ " सजी चिता तपती प्रेमाग्नि जीवन अपना यूं खपना था" प्रेम, जीवन और मृत्यु - बस खप जाना और फिर चिता तपना तपाना तापना ? भैया क्या कह दिया आप ने ! सोचे ही जा रहा हूँ... November 2, 2009 10:29 AM |
अऊर अब हमका इजाजत दिजिये… फ़ुरसत रहा त कल फ़िर मिलेंगे….
चच्चा जी,
ऐसा काहे बोले कि फुर्सत होगा तब आवेंगे
आप नहीं आवेंगे तो टिपण्णी का मजलिस कौन लगावेंगे
हम तो चच्चा जी रोज रोज कूद कूद कर आते हैं.
मजेदार टिपण्णी जो आप एक लाइन से पढाते हैं
Thank you !!
सही टिप्पणियों का खजाना एक जगह ही मिल जाता है. जय हो चच्चा टिप्पू जी की.
अरे आप की जय कर गये और रोहित बबुआ को नमस्कार देना भूल गये, सॉरी!! :)
आज की चर्चा बहुत ही मूल्यवान रही. खासकर लम्बे शीर्षक वाली पोस्ट की टिप्पणियाँ और उससे भी ज़्यादा प्रति-टिप्पणी पढने का मौका मिल गया इसी बहाने वरना हमें तो "शैलीगत प्रयोग", "भाषाविज्ञान", "समाज भाषाविज्ञान", "प्रोक्ति", "वाक्य पदीयम्" , `महावाक्य', "भाषा-वैज्ञानिक", "शैली वैज्ञानिक" जैसे भारी-भरकम शब्दों के गट्ठर की तरफ देखने का मौका कहाँ मिल पाता? जिस गाँव जाते नहीं वहां के कोस कैसे गिन पाते?
चच्चा बहुत अच्छा लगा टिप्पणी चर्चा
बढ़िया |
उल्लेख हेतु आभार !
कुछ उल्लेखनीय छूट भी गया है चचा -फिर लौटिये जहाँ भारी भरकम शब्दों की चर्चा छिडी है !
बढ़िया रही चर्चा :)
बहुत संतुलित टिपण्णी चर्चा ...कौन सा जासूसी कैमरा रखे हैं ..छाँट छाँट कर टिपण्णी लाने का ...फुरसत मिलेगे तो नहीं ...फुरसत तो निकालनी ही पड़ेगी ..!!
चच्चा!टिप्पणी चर्चा तो चढ़ बैठी।
चच्चा गजब करते हैं आप. इतनी बेहतरीन सम सामयिक टिप्पणी चर्चा करते हैं कि हम गदगदायमान हैं. कहां से इतना सब जुगाड करते हैं. ज्वलंत विषयों पर भी आपकी इतनी पकड है कि आप तो कोई महामानव लगते हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
और चच्चा ताऊजी डाट काम की भी टीप्पणीयां आज पहले बार ऊठाई आपने उसके लिये रामप्यारी की तरफ़ से धन्यवाद.
रामराम.
चच्चा !
पाँव लगिहों ...........
हमार टिप्पणी सामिल किए उ के लिए धनबाद ..पर चच्चा ! अब आने को है पूरा इलाहाबाद ....क्योंकि अब हम इक ठौर पोस्ट लगावत हौं जे मा बताई हैं कि शाब्दिक अंगप्रदर्शन का होई हैं
ललना की छाती दिखावन वारों को अब हम ललुआ के का का दिखाई हैं, तुम देखा और एन्जॉय करिब ..
हमार ज़िक्र किए के तैं धनबाद
______________अहमदाबाद
______________हैदराबाद
______________नौशाद
_अलबेला खत्री
पता नहीं आपने भी न जाने कहाँ कहाँ अपने स्पाई कैमरे फिट किए हुए हैं...कोई टिप्पणी जिनकी निगाह से बच ही नहीं पाती ।
आज की टिप्पणी चर्चा तो एकेदम धांसू च फांसू रही :)
फुरसत न मिले तो भी क्या अपने स्नेहियों के लिये फुरसन नहीं निकालेंगे?
खी खी खी खी खी खी खी खी ....आप हमारी पोस्ट भी कवर किये हैं और हमरी टिपण्णी भी...वाह...ख़ुशी के मारे पेट में गुदगुदी हो रही है...ख़ुशी से भी गुदगुदी होती है ये आज पता चला...ये गुदगुदी रोज हो इसी कामना के साथ...खी खी खी खी खी खी....
नीरज
अरे टिप्पू चचा अभी अभी जो आपने नै टिपण्णी चर्चा पोस्ट की उसमे पेज सही नहीं आ रहा हम कहाँ पर तिप्याये जरा एक लुक मारिये न !