चच्चा बदलेंगे टेम्पलेट...हम करेंगे टिप्पणी सेट...
10/05/2009
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हमने तो पहले ही कहा था...कि किसी भी बात की एक हद होती है...और जब अति हो जाती है तो उसका प्रतिकार करना भी जरूरी हो जाता है...चच्चा ने अपने रोहित बच्चा के साथ ..टेम्प्लेट वालों की टांय टांय.को ऐसा टैण.....टैणेण किया कि ..अब क्या कहें....सब कुछ आपके सामने ही है...सोचा तो ये था कि चच्चा निपट लें...फ़िर हम भी अपनी रपट दें.......तो पढिये .....
ब्लॉग-मालिक को बहुत बहुत बधाई कि जहाँ अन्य ब्लॉगर अपनी बात को लिखकर या कार्टून आदि दिखाकर समझाते हैं, वहीं आपने इसे करके दिखाया है.एक वाकया याद आता है:एक ठाकुर का लड़का शहर से पढ़कर छुट्टियों में घर आया तो खेतों पर घूमने गया, वहाँ उसने एक घास खोदने वाली को खेत की मेंड़ पर घास खोदते देखा, और लगा उसे पीटने.घसियारिन चिल्लाती जाती कि भैया छोड़ दे अब कभी तेरे खेतों में घास न खोदूँगी. लेकिन वह न माना,अंत में घसियारिन के मुख से निकला ,"बाबू जी छोड़ दो!" तो लड़के ने मारना बंद करके कहा, " साली पहले ही बाबू जी कह देती तो इतनी क्यों पिटती ?"
पंकज जी ने ठीक कहा है...."कृतघ्न राष्ट्र "...कभी कभी मै सोचता हूँ वो कौन से हौसले है वो कौन से जज्बात है तुम लोगो के जो मरने मिटने के ज़ज्बे को जिन्दा रखते है ..इतना सब कुछ देख सुन कर भी.....वो कौन से कारण है के संसद पर हमला करने वाले अपराधियों की फांसियों पे लम्बी लम्बी बहसे चलती है ...मानवधिकार वालो के बड़े बड़े झंडे हवा में उठते है ..अमूमन कोने में दुबके कुछ बुद्धिजीवी जाग उठते है .ओर उसी हमले में शहीद जवानो के परिवार कतार बद होकर इस देश के राष्टपति से गुहार लगाते है की हमला करने वालो को फांसी दो....तभी एक हमले में अपनी एक टांग गवां चुके मेरे मेजर कजिन के पिता कभी कभी गुस्से में कहते है अपने बेटे को आर्मी में मत भेजना...कभी कभी तो ऐसा लगता है देश के दुःख भी बंटे हुए है ...कश्मीर के दुःख ...कश्मीर की मौत की खबर पे अब लोग ठहरते नहीं ....या तो रिमोट बदल कर कुछ ओर देखते है या पन्ना पलटकर कुछ ओर ....मेजर सूरी को देखता हूँ ओर उम्र का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा हूं ....क्या कारण होगे इस इंसान के इस तरह से जाने के .किसी सरफिरे की गोली....अगर आज से दस साल पहले सूरी किसी ओर ब्राच को ज्वाईन करते तो....तो क्या वाकई इश्वर का भी ऊपर कोई रजिस्टर है जो नोट करता होगा ..किसने कैसे अपनी जिंदगी कुरबान की ..एक कृतघ्न राष्ट्र वासियों के लिए ...मुझे मालूम है के बिस्तर पे लेते एक फौजी को ऐसी तल्ख़ बाते नहीं लिखनी चाहिए ...अंत में पंकज जी के शब्द उधार ले रहा हूं.....अपने पर शर्मिंदा हूं कि मैं भी उस भीड़ का हिस्सा हूं ।मुझे माफ़ करना अगर दिल दुखा हो तो....
गांधीजी इस कार्पोरेट युग के दबावों को किसतरह से स्वीकार करते या बीच का रास्ता निकालते इस परकल्पना में विचरण करने की बजाय उनकी चौथी पीढ़ी क्या कर रही है उसी नज़रिये से देखा जाए।गांधी की चौथी पीढ़ी यानी इस देश की चौथी पीढ़ी। गांधी युग जैसी कोई बात कभी नहीं रही। वैसा हुआ होता तो पाकिस्तान भी नहीं बनता। गांधी के वक्त में ही बहुत बड़ा तबका उनका अंध समर्थन नहीं करता था। उनके घर में ही उन्हें सौ फीसद समर्थन नहीं था।पेन तो अब बिक रहा है। भाई लोगों ने गांधी के नाम पर बहुत कुछ दशकों पहले बेचना शुरू कर दिया था।
सुख महसूस कर सकने की क्षमता में है . धन में सुख होता तो सारे धनी सुखी होते ! देह में होता तो आदमी ऊबता नहीं और नए की खोज में न निकल पड़ता! कुछ कुछ वैसा ही जैसा की "जब आवे संतोष धन सब धन धूलि समान."दरअसल आपकी जो रागहीन दृष्टा की भूमिका बनती जा रही है वह चीजों में जीने की जगह उसको दूर बैठ कर देखने से बनती है.यह आपको एक अच्छा लेखक बना सकती है क्योंकि भोक्ता सृष्टा नहीं होता अपितु दृष्टा ही सृष्टा होता है .सुख सबके लिए अलग अलग होगा और यह उसकी मानसिक दशा और समझ पर निर्भर करेगा
जन्म के दिन फूल की थाली बजीदुख कटा , सुख के दिन आये.....".........अब दिन लगा ढलने !"आज हमारे बीच नहीं हैं तो क्या हुआ.....एक कविता मेरी ओर से----नियति का खेलबड़ा अजीब होता हैबच नहीं सकता है कोई इससेइस जगत में।जगत भी एक बगिया हैईश्वर इसका माली हैइस बगिया का हर अच्छा पुष्पजिसे वह समझे........यह अपनी पूर्णता ओर हैसभी पुष्पों में उसे सबसे पहलेतोड़ लेता हैउसके तोड़ने के पीछेसंभव है पुष्प के विकृत होने से बचाने का भाव हो ।आप नहीं हो हमारे साथआपका जीवन दर्शन तो है ......!
एक संवेदनशील विषय।लेकिन बेनामी टिप्पणी के द्वार बंद कर उन पाठकों को रोका जाएगा जो ब्लॉगर नहीं हैं किन्तु अपने विचार/ सुझाव/ सराहना से अवगत कराना चाहते हैं।फिर हम ही कहेंगे कि पाठक आते ही नहीं ब्लॉगरों के अलावा।बेनामी टिप्पणी आई भी तो वह तब तक बेनामी रहती है जब तक उस पर कोई प्रतिकिया ना हो।मेरा व्यक्तिगत मत है कि किसी संभावना से बचने के लिए मॉडरेशन उचित है।
प्रतिबन्धित करना किसी समस्या का हल नहीं है… हिन्दी ब्लाग जगत में अधिकांश लोग यह तो मान चुके हैं कि ये एक "समस्या" है, तो इसका सबसे अच्छा उपाय है "इग्नोर" करना, ये लोग कितनी ही भड़काऊ पोस्ट लिखें, कितने ही उत्तेजक टाइटल रखें, इनकी पोस्ट पर न जायें, और यदि जाना ही हो तो तर्क के साथ जायें, गालीगलौज करने नहीं। जब आप उनके ब्लाग पर टिप्पणी करेंगे नहीं, जब आप उनकी प्रचार लिंक (यानी किसी अवतार या अंजुमन आदि) को डिलीट कर देंगे, तब धीरे-धीरे उनका भी आपके ब्लाग पर आना कम हो जायेगा… बस हो गया समस्या का हल…। ब्लागवाणी एक सार्वजनिक मंच है वह प्रतिबन्धित करने जैसा काम काम क्यों करेगा? आपकी इच्छा नहीं है, न पढ़ो, न जाओ, न टिपियाओ, न टिप्पणी लो… बस आसान सा रास्ता है… काहे सिर खपा रहे हैं…
इस मुद्दे पर हम महान विचारक सिद्धू जी महाराज का एक अमृत वचन ठेलने की अनुमति चाहते हैं. लीजिये अमृत. स्वामी जी उचारते हैं;"ओ गुरु, कार्टूनिस्ट, कम्यूनिस्ट और अनिष्ट होना उतना ही दुर्लभ है जितना हिमालय को खिसकाना...जितना राशन की दूकान से मिट्टी का तेल पाना... जितना कठिन है बद्रीनाथ जाना...एक कार्टूनिस्ट से हाथ धोने की बात करना वैसा ही है जैसे पकिस्तान में डेमोक्रेसी लाना...इसलिए चलता जा..अपने कर्म करता जा...किसी के हाथ धोने की बात मत कर...किसी के साथ होने की बात मत कर..."कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कभी गुड़ तो कभी चना नहीं मिलता."
तो आज इतने से काम चलाईये...जल्दी ही चच्चा और हम दोनों ही मिलकर कमान संभालने वाले हैं..तब देखेंगे कि भूले बिसरे गीत कौन होता है....
बढ़िया चर्चा। आभार
अजय जी,
आपकी टिप्पणी चर्चा मेरी पसंदीदा है.ब्लॉग जगत की सबसे बड़ी समस्या गम्भीरता की कमी की है.लोग पढना चाहते नहीं है और चाहते है की उन्हें पढ़ा जाए.ब्लॉग जगत की सार्थक पोस्ट्स को गंभीर और सार भूत टिप्पणियाँ ही आधार देती है.शायद उम्दा बढ़िया कहकर हम चाहते है कि मेरी पोस्ट को बदले में सराहा जाये.और तभी टी आर पी के सस्ते हथकंडे ब्लॉग जगत को शर्मिदा करने लगते है.ब्लॉग ने साहित्य में कतिपय लोगों के एकाधिकार को खत्म किया है पर ब्लॉग स्वयं अब उस रास्ते पर चलने का प्रयास कर रहा है.आपकी टिप्पणी चर्चा वास्तव में सारभूत टिप्पणियों पर चर्चा कर ब्लॉग्गिंग के दोषों को दूर कर रही है.आपको साधुवाद.
बढ़िया टिप्पणीचर्चा. बधाई. अच्छा लगा पढ़कर चुनिंदा टिप्पणियाँ.
बढ़िया
बधाई.आभार
प्रविष्टियों को बिना ठीक से पढ़े की गई चिट्ठा-चर्चा देखी है । टिप्पणी चर्चा में ब्लॉग और टीप दोनों पढ़नी होंगी - आप इस मानदण्ड पर खरे उतरते दीख रहे हैं ।
जमा देंगे आप टिप्पणी चर्चा को । अच्छी टिप्पणियों का चयन । आभार ।
बहुत बढिया टिप्पणी चर्चा, शुभकामनाएं.
रामराम.
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