चच्चा टिप्पू सिंह हत्थे से उखडे : फ़िर बदला टेंपलेट

10/05/2009 Leave a Comment

चच्चा टिप्पूसिंह की तरफ़ से आज की टिप टिप ............

आज पहली टिप्पणी चिट्ठाचर्चा से

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर Says:
Posted on October 04, 2009 5:32 PM
समीरजी की बात भली लगी. चिठ्ठा चर्चा के टेम्पलेट बदलता कोन है ? चिठ्ठा चर्चा के सभी के सभी चर्चाकार इस टेम्पलेट के बदलाव मे योगदान करते है ? या किसी एक को ही मेहनत करनी पडती है ? क्यो कि टेम्पलेट बडा ही सुन्दर है. दाद देनी पडॆगी जी. कल नऎ टेम्पलेट का ईन्तजार रहेगा जी.
मुजे लगता है कुछ दिनो से चर्चाऎ गोण हो गई है टेम्पलेट के सामने.....
रविरतलामीजी बेहद नपी तुली सटीक चर्चा अच्छी लगी


टाईगर साहब टेंपलेट बदलने के काम मे सबको लगने की क्या आवश्यकता है? ये तो बच्चों का काम है तो बच्चे ही करेंगे। आप तो रोज नये नये टेंपलेट देखिये, अभी तो एक दिन में एक ही बदला जारहा है, आगे हो सकता है दिन में दो बार बदलाव किये जायें? आखिर बाल हठ भी तो एक बडा हठ है. बालक की बात कैसे टाली जा सकती है? और खासकर जबकि बालक मगरुर हो तो उसकी बात तो मानी ही जानी चाहिये। जबकि आका लोग जानते हैं कि टेंपलेट बदलना इस मर्ज की दवा नही है.

अगली टिप्पणी चिट्ठाचर्चा से
काजल कुमार Kajal Kumar Says:
Posted on October 04, 2009 11:13 PM
"चिटठा चर्चा की ही तरह ले आउट बनाकर पाठको को गुमराह करना ठीक नहीं.."
क्यों नहीं (?) पाइरेसी का ज़माना ख़त्म हो गया क्या ?


लो बोलो जी, एक चोर दूसरे चोर को डांट डपट रहा है? ये बात कोई मौलिक आदमी कहे तो ठीक है। पर ऊ त खुद ही दुसरे का टेंपलेट मार के लाये हैं तो चोरी का माल मार दिया तो क्या होगया? अब तो हम हैडिंग ऊडींग भी सब कुछ उनकी तर्ज पर ही रखेंगे. देखते हैं चच्चा की कब तक बेइज्जती करते हैं ये. अब तो चच्चा का हत्था उखड ही चुका है।

जिंदगी के रंग अनिल जी के संग पर ये टिप्पण्णी देखिये...और अनिल जी के बरे में पढना आपको बडा आनंद देगा।
मीत said...
ज़िन्दगी है का यह रंग भी बेहद अच्छा था.... सच कहा अनिल जी ने जिस तरह सांस लेना जरुरी है उसी तरह जीने के लिए संघर्ष भी उतना ही जरुरी है...
और सुशील जी आपको धन्यवाद... क्योंकि आपके इस कदम से इन पोस्ट के द्वारा कितने ही लोगो को प्रेरणा मिल रही है...
उम्मीद है... कमेन्ट देने वाले सभी लोग हमें अपनी ज़िन्दगी के रंगों से प्रेरणा देंगे...
मीत

October 5, 2009 11:56 AM




कार्टून:- सौर ऊर्जा के ख़तरे पर ये टिप्पण्णी पढिये...
संजय बेंगाणी, October 5, 2009 10:15 AM
यह तो गलती है, हर्जाने की हकदार है. न माने तो द्विवेदीजी के माध्यम से केस ठोक दो.... :)



ऑनलाइन आमंत्रण स्वीकार करें....
एक बहुत ही जनोपयोगी कोशीश...आपभी सहयोग करें.
P.N. Subramanian, 5 October, 2009 11:24:00 AM IST
हमने दाखिला ले लिया. आभार


पिता जी की अंतिम कविता ! पर बहुत ही प्रेरणादायक पोस्ट है, जिस पर यह टिप्पणी देखिये...
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
अरविंद जी, पिता जी ने इच्छित जीवन जिया। वे और भौतिक उपलब्धियाँ हासिल कर सकते थे। लेकिन उन्हों ने वही कीं जो उन्हें चाहिए थी। वे अपने आस पास से जुड़े थे। यह बहुत बड़ी बात थीय़ उन के बारे में आने वाली सामग्री की प्रतीक्षा रहेगी।

04 October 2009 20:39



ग़ैरज़रूरी बहसों में अटके हुये
पर ये टिप्पणी देखिये..
cmpershad का कहना है ₪
भाषा और डिग्री में अंतर है। डिग्री वाला केवल किताबी भाषा जानता है जब कि कोई डिग्री न रखने वाला भी अच्छी भाषा बोलता है। यही बात साहित्य में भी है। आज जितने पीएच.डी. कर रहे हैं वे उन पर हैं जिनको शायद ही कोई बड़ी डिग्री हासिल है। पढाई अलग है और समझ अलग:)

9:37 PM, OCTOBER 04, 2009


अब टेंपलेट का कहानी सुन लिया जाये....हमार रोहित श्रीवास्तव आज सुबह सुबह ही एक ठो सीडी मा कुछ लेके आया और ऊ का कोरेल उरेल ड्रा किये और डेढ मिनट मा इ ससुर टेंपलटवा बदल के धर दिहिस..आपको पसंद आया क्या? और रोहित बाबा हमसे बोले..चच्चा अब हम पलक झपकते ही बदल दिया करेंगे..आप कोनू टेंशनवा मत लिजियेगा. हम कहे कि हमें का टेंशन है? टेंशन तो त ऊ मगरुरवा का है..ऊ टेंपलेटवा बदलेगा त तुम भी बदल देना...

एक सच्ची मुच्ची की बात कहें? ई हमका तो अच्छा नाही ना लगा..ऊ पुराने वाला बहुते बढिया था..पर का करें ई मगरुर बचुआ का मर्जी..जैसा गंदा संदा ऊ लगायेगा हमको भी त वैसा ही लगाना पडेगा ना? का कहते हैं? कुछ कहिये भी...का सारा बकबास हम ही करते रहेंगे?

अब चच्चा टिप्पू सिंह की टिप टिप कबूल किजिये। जल्दी ही आपसे फ़िर मुलाकत होगी।

अन्याय के आगे नही झुकेंगे। सर कट जाये मगर सम्मान नही खोयेंगे।

12 comments »

  • L.Goswami said:  

    सा गंदा संदा ऊ लगायेगा हमको भी त वैसा ही लगाना पडेगा ना?

    नही ..आप अपने काम से मतलब रखें ..अच्छी टिप्पणियाँ चुने और उसपर चर्चा करें ..इन फालतू के विवादों से क्या मिलना है?

  • Mishra Pankaj said:  

    चच्चा आपकी जय हो
    एक नजर यहाँ भी डाले

  • समयचक्र said:  

    बहुत बढ़िया टिप्पणी चर्चा है . बधाई स्वीकार करें .

  • Arvind Mishra said:  

    लवली जी की भी सुनें !

  • "सांड" बनारसी said:  

    इ कमेंटवा पैदाइशी विनम्र की अनूप जी के पोस्ट पर आइल रहल पधिलो . उ ता पाहिले से ही  विनम्र बा मगरूर नाही

  • Himanshu Pandey said:  

    टेम्पलेट के क्रिया-व्यापार से तो हमारा भी पाला ठीक ही पड़ गया । बदलने के चक्कर में सारी सजावट-मजावट खो गयी । ये टेम्पलेट-टेम्पलेट का खेल चिट्ठा-चर्चा और टिप्पणी चर्चा में ही जम रहा है ।

    अब बस भी करें ! काश ! कोई थक जाता ।

  • "सांड" बनारसी said:  

    कुश ' पैदायशी विनम्र '
    September 25, 2009 at 11:23 am | Permalink
    on http://hindini.com/fursatiya/archives/676
    ये क्या लफडा है..?

    कुश: हर चीज में लफ़ड़ा ही देखते हो। पूरे ब्लागर हो। कभी हसीन मेल-मिलाप के बारे में भी सोचा करो। :)

  • बाबा निठ्ठल्लानंद जी said:  

    चच्चा अब तक मगरुर बच्चा था अब ये कुश ' पैदायशी विनम्र ' कहां से निकल आया? ये तो पैदायशी विनम्र है? फ़िर इसने आपकी शान मे गुस्ताखी कैसे की? चच्चा छोडना मत इसको। आखिर इसने चच्चा को क्या बबली समझा है?

    चच्चा आज तो आपने टॆंपलेट बहुत ही शानदार लगाया. चच्चा इसको हम भी लगाऊंगा...जरा लिंक तो दिजिये ना चच्चा जी....

  • MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said:  

    चच्चा! आपने कहा- आगे से दिन मे दो दो नये टेम्पेलेट बदले जा जाएगे। पहले बताना पडेगा... क्यो कि गोदान मे टेम्पलेट का स्टाक कम है। ब्लोग स्पोट वालो को सुचित करना पडॅगा की भारी डिम्माड है टेम्पलेटो की।

  • Gyan Darpan said:  

    बढ़िया है टेम्पलेट बदलते रहो !

  • प्रवीण त्रिवेदी said:  

    अरे चच्चा !!
    अब तो कूल हो जाओ !!
    एक टेम्पलेट तक तो ठीक था पर हेडर हुबहू वही ?
    कुछ जमा नहीं !!
    इतना गुस्सा ठीक नहीं!!
    वैसे आपकी शान में गुस्ताखी नहीं ना होनी चाहिए .....ब्लॉग चच्चा जो ठहरे!!

    गणित शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी के दिमाग को आकर्षित करने के लिए क्या कर सकती है?
    ऑनलाइन आमंत्रण स्वीकार करें.....

  • Leave your response!