पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई, बात कुछ अटक सी गई!
9/25/2009
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लो जी....चच्चा टिप्पूसिंह फ़िर आगये.. थोडी देर से ही सही ..पर आ तो गये ना...इस बार टिप्पणी पोस्ट सब कुछ जूतमपैजार टाईप ही हैं और हमने जूतमपैजार से बचने की कोशीश भी की है. अगर किसी को उसके ब्लाग या टिपण्णी का जिक्र अच्छा ना लगे तो चच्चा को बतादें, आगे से चच्चा आपके दरवज्जे पर भी नहीं झाकेंगे और अगर आपको पसंद आया तो चच्चा का उत्साह बढायें. तो अब सलाम नमस्ते नही जी..आप सबको टिप..टिप.चच्चा टिप्पू सिंह की तरफ़ से। अब टिप टिप करते हुये ये टिप टिप पढिये।
पर चलने से मैं लाचार हूँ
अजय कुमार झा said...
तुझे यकीन तू दुनिया है मेरी,
मुझे पता, कि मैं तेरा संसार हूं..
तो बोल आज या मौन रह, तेरी हर भाषा,
मैं आज सुनने को तैयार हूं..
यूं लाचारियों की बातें न कर, मंजिल का पता दे,
मैं उन्हीं को अपनी मंजिल बनाने को बेकरार हूं..
September 25, 2009 3:59 AM
लो जी इस नायाब टिप टिप के बाद आगे लिये चलते हैं आपको....दर्द की हर हद से गुजर गया कोई पर आई इस टिपणि की तरफ़
'अदा' said... @ September 25, 2009 1:25 PM
akele akele ye charcha sanwaari hain
Pankaj babu aap bahuton par bhaari hain
first class....jhakass..
अब आईये शरद ऋतु लाई नई बहार पर ...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…
वाह-वाह कविवर, आपने तो शरद की अभी आगवानी कर दी। यहाँ इलाहाबाद में तो अभी ऊमस भरी गर्मी झेल रहे हैं। शारदीय नवरात्र बीता जा रहा है लेकिन गर्मी अभी सकुचा नहीं रही है।
वर्षा रानी को जाने कहाँ छिपा दिया इन कमबख्त हवाओं ने। बादल भी परे चले गये। अब शरद ऋतु भी आने में देर कर रही है।
आपकी कविता ने जरूर मन मोह लिया। शुक्रिया साहब...।
September 25, 2009 5:27 PM
लाईट वाली ठंडी अलमारी
आशीष खंडेलवाल said...
जानी इस मशीन मे ठंड लग जाया करती है।:)
हैप्पी ब्लागिंग।
September 25, 2009 6:27 PM
लो साहब इस सलाह के बाद मैंने जो क्षण जी लिया है ...
विनोद कुमार पांडेय, September 25, 2009 10:44 AM
वाह...कितने बेहतरीन शब्द और भावों को पिरोया है आपने..
सुंदर कविता..बधाई..
और अब पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई पर पैदायशी विनम्र साहब ने क्या कहा?
कुश ' पैदायशी विनम्र 'और अब उडनतश्तरी जी को कब से खामोश रहना मुझे पसंद है? इसीलिये फ़ुरसतिया जी ने फ़रमाया ..
September 25, 2009 at 11:23 am |
ये क्या लफडा है..?
कुश: हर चीज में लफ़ड़ा ही देखते हो। पूरे ब्लागर हो। कभी हसीन मेल-मिलाप के बारे में भी सोचा करो।
अनूप शुक्ल ने कहा…और इसी पोस्ट पर ताऊ भी अपना लठ्ठ घुमाते हुये ज्योतिषगिरी करने पहुंचे.
गुस्से के पाले में कबड्डी खेलने पर भी ऐसा होता है:बड़बोला मौन हो जाता है, मितभाषी बड़बोला हो जाता है। धीमे बोलने वाला चिल्लाने लगता है। चिल्लाने वाला चिंघाड़ने लगता है। चिंघाड़ते रहने वाला हकलाने लगता है। हकलाते रहने वाले के मुंह में ताला पड़ जाता है।
होता होगा कोई कायर हम आप तो शायर हो लिये।
हम तो भगवतीचरण वर्मा की कहानी दो बांके के देहाती को याद कर रहे हैं: ”मुला स्वांग खूब भरयो।”
9/25/2009 07:38:00 पूर्वाह्न
ताऊ रामपुरिया ने कहा…
मौन परमात्मा है. आज आपके साथ बहुत बडी उप्लब्धि जुडने की प्रबल संभावना है. यह ताऊ देवैज्ञ की भविष्यवाणी है.
अब हमने भी ज्योतिष की भविष्यवाणियां करना शुरु कर दिया है.
रामराम.
9/25/2009 08:24:00 पूर्वाह्न
यह मेरा स्वीट होम है ....
Mired Mirage ने कहा…
गजब का घर है शेफाली जी! परन्तु शायद अब ऐसे बहुत से घर हैं और जो नहीं हैं वे भी देर सबेर हो ही जाएँगे।
घुघूती बासूती
Thursday, September 24, 2009 9:50:00 PM
ताऊ की शोले "पत्रिका" के ब्लाग चंक में
संजय बेंगाणी
September 24, 2009 4:28 PM
ये किसका आरटिकलवा छपा है रे...
आपका ही है उस्तान...
तब ठीक है, हमरे डायलोग वो ताऊ ले गया था, उसके नाम से तो नहीं छपा ना..
नहीं उस्ताद, आपको तो पढ़ना आता (ही नहीं) है, खूद ही देख ल्यो...
बराबर, गब्बर के नाम से ही छापा है रे अखबार वाले ने...शाबास....
***
बधाई हो ताऊ...शोले तो हीट हो गई....
झूठे ख्वाब
मुकेश कुमार तिवारी said...
रंजना जी,
एक सुन्दर और सुखद अहसास भरी कविता जो जीने के लिये ख्वाबों की अहमियत और ख्वाबों के प्रति हमारी संजीदगी दोनों को दर्शा रही है।
एक प्यारा सा आशावादी दृष्टीकोण :-
बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक सूचना आप सभी साथियों को। पर ये टिपणि पढिये...
अल्पना वर्मा said...
वाह ! बहुत बढ़िया ख्याल है यह तो..आप की पोस्ट का ही नहीं ..ब्लॉग के रंग भी निखरे लग रहे हैं..
और हाँ नैना को ढेर सारी शुभकामनयें उसके हिंदी के इम्तिहान जो हैं....अ से अनार ,आ से आम!खूब मन लगा कर पढाई करना!
September 25, 2009 2:28 AM
"बंन्द करो अब ये ब्लोगिंग" पर बबली जी की ये टिप्पणी देखिये...
Babli said...
मुझे तो इस बात पर आश्चर्य लग रहा है आखिर मुझ पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम क्यूँ लगाया गया? मैं भला अपना नाम बदलकर किसी और नाम से क्यूँ टिपण्णी देने लगूं? खैर जब मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं तो फिर इस बारे में और बात न ही करूँ तो बेहतर है! आप लोगों का प्यार, विश्वास और आशीर्वाद सदा बना रहे यही चाहती हूँ!
मुझे संगीता जी के बारे में आपके पोस्ट के दौरान मालूम पड़ा ! उनके साथ मेरी पूरी हमदर्दी है और मैं उन्हें अच्छी तरह से जानती हूँ कि वो बहुत ही अच्छा लिखती हैं और उनका हर एक पोस्ट मुझे पसंद है! जिन लोगों को और कोई काम नहीं है वो दूसरों की निंदा करने में लगे रहते हैं! आपने सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है!
September 24, 2009 6:47 PM
अब आज की टिप टिप को यहीं विराम देते हैं...पर हमारा खोजी तंत्र ब्लाग जगत की पिछली दो सप्ताह से चली आ रही
किट किट वाली और तल्ख टिप्पणियों को इकठ्ठा करने का काम कर रहा है...चच्चा टिप्पूसिंह का वादा है कि ऐसी खोज परक टिपणीयां इससे पहले आपने नही पढी होंगी...तो बस थोडा इंतजार किजिये..दूध का दूध और पानी का पानी...हम अगले बुलेटिन मे बहुत सनसनी खेज रहस्य उजागर करने जा रहे हैं...इंतजार किजिये....अब चच्चा टिप्पूसिंह की तरफ़ से टिप..टिप..टिप.........................
वाह चचा .....इधर मैं थोडा सा अनियमित सा हो गया था...आपने आज सारी कसर पूरी कर दी...कैसा धमाका चचा....इंतजार कर रहे हैं....मजेदार टिप्पणियां मिली...
हम तो गुरुवर समीर लाल जी की बात कर मौन धारण करते हैं जी:)
चच्चा टिप्पूसिंह-अब आराम कर लो, थक गये होगे. कल फिर आना!!
वाह चच्चा टिप्पू सिंह जी छा गये आप तो. एक तो आप नियमित नही लिखते..यह बडी खराब बात है...अब आप टिप टिप की बजाये किट किट वाली टिपणियों की पोस्ट कितने दिन बाद लिखेंगे? कौन जाने? झा जी भी एक बार शक्ल दिखा के निकल लिये..
रामराम.
ताऊ हम जरा ..किसी तकनीकी दुविधा के चलते...अभी सक्रिय नहीं हुए हैं.....मगर यकीन मानिये जल्द ही आपकी शिकायत दूर करेंगे...
वाह टिप्पू सिंह जी छा गये आप तो .............. मजेदार है भाई आपका ब्लॉग तो .......
अरे टिप्पणी चर्चा तो मैंने आज ही देखी -मजेदार शुरुआत !
नया अंदाज शानदार है..
टिप्पणियों की भी चर्चा
सुंदर है और है टीप टाप
टीप टाप कर रख दिया।
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