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इत्ता बढ़िया लिक्खे कि बस्स पूछो नहीं। खांटी रसिया हो ।

9/09/2009 Leave a Comment

वाह जी ..वाह..चच्चा टिप्पूसिंह फ़िर आगये..सलाम नमस्ते नही जी..आप सबको टिप..टिप.चच्चा टिप्पू सिंह की तरफ़ से। अब टिप टिप करते हुये ये टिप टिप पढिये।

प्यारी प्यारी बुलबुल बिटिया रानी


क़ानून ताज़ीरात शौहर (पति दंड विधान ) : भारतेंदु हरिश्चन्द्र के जन्मदिवस पर
Arvind Mishra, September 9, 2009 9:34 AM
भैया यह उर्दू में है या फारसी में -प्रकाश डाला जाय !
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डालो जी प्रकाश डालो टार्च लेके.


जीतू- जन्मदिन के बहाने इधर उधर की
लो जी जन्मदिन के बहाने क्युं? बिना जन्मदिन भी कल्लेंगे तो क्या काला कौवा काट जायेगा?
बी एस पाबला Sep 9th, 2009 at 9:57 am
बढ़िया!
इसी बहाने अनूप भार्गव जी का जनमदिन पता चला। अब तो वे Belated की सूची में चले गए हैं, जो हर माह के अंतिम दिन आती है।

एक बात अपने हक की लगी कि सितम्बर में पैदा हुये लोग कलात्मक प्रतिभा से युक्त होते हैं।

ब्लागिंग के चक्कर में जो हो जाए कम है, केक काटना तो …


खोजा बहूत से नाम , पाया बोदूराम
Nirmla Kapila on September 9, 2009 10:04 AM
कुबेर प्रसाद को भीख मागते देखा,
लक्ष्मीपति को लेते लोन,
अमरलाल का निकला जनाजा
इनरपाल को तोडते आम,
सबसे अच्छा है बोदूराम. :)
कि नयनसुख दुनिया को देख नहीं पाता और गरीबदास महलों मे रहता है खुशी राम हर दम रोता रहता है --- मगर बोदु राम सही है अक्ल का इस्तेमाल तो करेगा हा हा हा
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अब नाम बोदूराम है तो उल्टे काम तो करबेई करेगा.


कार्टून:-रे बाबा, इ सड़क मैं कबहुं ना चलि हौं
संजय बेंगाणी, September 9, 2009 10:22 AM
झुठ बोलते हो...कच्छा बाकी है, साफ दिख रहा है... :)
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लगता है ताऊ की शोले वाले ठाकुर और गब्बर का टोल नाका है?

और मेरे चेहरे पर ये ख़ुशी आयी
Udan Tashtari said...
लेकिन आँख देख कर डर गये..तो रहने दो..क्या स्टाईल है हमारी बिटिया की..ये बात!!! बहुत खूब...प्यारी बच्ची!

9 September, 2009 8:39 AM
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लो कल्लो बात! अब गब्बर भी डरने लगा. शेम..शेम..:) इत्ते बले होकल भी डलते हो गब्बल अंकल?


अजब है तेरी माया , जिसे कोई समझ ना पाया (चर्चा )
हिमांशु । Himanshu said... @ September 9, 2009 7:34 AM
मनोरम चिट्ठों की चर्चा । यूँ ही अविरत जारी रहिये । आभार ।


आज मीनू खरे तथा जीतेन्द्र (जीतू) का जनमदिन है
अविनाश वाचस्पति September 9, 2009 6:50 AM
विज्ञान को दिलचस्‍पी से आगे
महादिलचस्‍पी के सफर तक ले जाने
और
मेरा पन्‍ना को सबका पन्‍ना
बनाने की
मीनू खरे और जीतू भाई को
जन्‍मदिन की पन्‍ने भर भर कर
हार्दिक मंगलकामनायें।
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लो जी सुनल्लो बात। टोकरी भर भर बधाई तो सुनी थी..अब पन्ने भर भर भी बधाई देने लगे..जय अविनाश जी की..बधाई नया मुहावरा देने की...


यहाँ ...वहाँ...क्या कहें....
September 8, 2009 5:55 PM
वाणी गीत said...
क्या बात है अदाजी ..अपनी माटी की याद सता रही है ??..सच .. कैरी ,आम, अमरुद, फालसा, शहतूत आदि खरीद कर खाने में वो स्वाद कहाँ जो पेडों को हिला डुला कर बड़ी तरकीब से जुगाडे फलों में होता था ...
यह भी सच है कि मकान बनाये जाते हैं ...घर बसाये जाते हैं ..
आज तो दोनों रचनाओ ने बाँध कर रख दिया ...
जीने की ललक बढ़ी मौत झलक गयी...!!
बहुत उम्दा ...बहुत बढ़िया
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देशी फ़लों के नाम पढ पढ कर ही मुंह मे पानी आगया जी।


पुलिसिया लंगूर
Anil Pusadkar said...
मुनीश भाई सही कहा आपने।इंसान बंदरो का ठिकाना खा गया है।हम लोग पहले मौधापारा मे रहा करते थे।घर के पीछे दादाबाड़ी थी जिसके खुले इलाको मे खुब पेड़ लगे हुये थे।उन पर बंदरो के झुंद रहा करते थे।धीरे धीरे पेड़ कटते चले गये और शहर के बीच से बंदरोका नामो मिशान मिट गया।

08 September 2009 11:39
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लो जी..इंसान मरने लगे तो बंदरों का क्या? खुद का ठीकाना भी खा जाता है।


"लित्तू भाई - कहानी [भाग ३]"
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...
अपने अपनी अन्य कहानियों के लिंक देकर
अच्छा किया है
और हम
लित्तू भाई की
रहस्यमयी मुस्कराहट पे अटके हैं :)
रोचक ....आगे क्या हुआ ?

- लावण्या

September 8, 2009 12:20 PM


कालिया ने की गब्बर से बगावत : ताऊ की शोले
राज भाटिय़ा
September 8, 2009 9:08 PM

अरे ताऊ गब्बर तो खुब सही बनाया, लेकिन इस कालिये के हाथ पांव क्या बसंती से किराये पर लिये है, बडे गोरे गोरे है, ओर मुंह बिलकुल काला,

ओर ताऊ सुना है बसंती की सहेलिया आप के विरोध मै धरना देना चाहती है, तभी तो कोई टिपण्णी देने नही आई, सभी मोसी के यहां इकट्टी हो कर आगे की योजना बना रही है
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लो जी कल्लो बात..ताऊ उल्टी गंगा हिमालय पर चढा रिया है? पर क्या कल्लोगे? चढा ताऊ चढा...आखिर रामप्यारी प्रोडक्शन की फ़िल्म मे गंगा को हिमालय मे नही चढावोगे तो एकता कपूर बहुत लठ्ठ मारेगी।:)


शादी-शुदा महिला को मंगलसूत्र छिपाते दिखाकर क्या बेचना चाह रहे है ये लोग?
ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey said...
पता नहीं यह विज्ञापन वाला छिपा रहा है मंगल सूत्र या नारी खुद। मुझे लगता है कि दिग्भ्रमित नारी खुद भी कुछ अण्टशण्ट भूमिका तलाश रही है अपने लिये।
बाकी, जो नारी को अंधेरे से मुक्त कराने की बात कह रहे हैं, खुद तो जड़ता से मुक्त हो लें!
SEPTEMBER 8, 2009 4:15 PM
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बिल्कुल सही कहा जी आपने. ज्यादातर लोग आपका समर्थन करते नजर आये।


मिलिये मेरी बुलबुल से....
Udan Tashtari said...
बेटियां आदमी को इंसान बनाती हैं...और मकान को घर ....

कितनी प्यारी बात कही!!


-बुलबुल तो बड़ी प्यारी बच्ची है. और फोटो लाओ..अलियन से मिलवाओ..तबहि न घुमाया जायेगा बिटिया को उड़न तश्तरी में.

अब अगली तस्वीर खुद की हेंचो और लगाओ!!

लो जी यहां भी जबलपुरिया भाषा का दबदबा..हेंचो और लगाओ!! बहुत सही जी..अपनी भाषा हमेशा साथ रहनी चाहिये जी..हेंचली हमने तो। और पोस्ट के उपर ही लगा दी जी।


वाह, अब ब्लॉगर पर भी एडवांस्ड पोस्ट एडिटर
मीत said...
व्व्व्व्व्वाह आशीष भाई मजा आ गया...
बहुत खूब ... भाई तुसी ग्रेट हो...
मीत
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वाह जी..क्या के रिये हो मियां? ग्रेट तो ग्रेट ही रहेंगे।


रमणी के नर्म वाक्यों से फूल उठा मंदार (वृक्ष-दोहद के बहाने वृक्ष-पुष्प चर्चा )
गिरिजेश राव, September 7, 2009 10:17 PM
मुझे जे न समझ आवे कि मदार पर हमरी टुच्ची सी पोस्ट से आप काहें घबरा गए रहन ।

इत्ता बढ़िया लिक्खे कि बस्स पूछो नहीं। खाटी रसिया हो । रमणी जगत पर नजर बहुत मारत रहे हो साइत।

मिसिर जी तो अब पुरुष और नारी चर्चा के बाद 'लतियावन' पर लिखेंगे। हमें पूरा यकीन है।

ओझवा अब पक्का 'अंखफोरवा' से नहीं डेराएगा। हमने डरा कर रखा था, आप ने बच्चे को ढीठ बना दिया। नयनमटक्का में तेजी लाएगा ताकि रमणी संग शीघ्र मिले।

काव्या जी अपनी दस्तखत 'वैज्ञानिक दृष्टि...' ऐसन जगह पर न बनावें तो ही अच्छा रहे। ऐसी रसिया पोस्ट पर बिग्यान का का काम ?

दूसरे नम्बर के संयुक्त फोटो में बायीं तरफ का हिस्सा देख कर मनवा बौरा गया है।

'Poekilocerus pictus' (अरे वही बेशर्म टिड्डे, हम सोचा कि जीभतुड़ाऊ नाम देकर बिग्यानी में नाम लिखा लें) का लिंक देकर अच्छा किया। इससे सामाजिक चेतना का प्रसार होगा। आम जनता में आपसी प्रेम बढ़ेगा ;) हे हे हे....
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कालिदास ने कभी नहीं सोचा होगा कि घोर कलऊ में उनके सन्दर्भ लिए ब्लॉग जैसा कोई लिखेगा तो इस तरह का असांस्कृतिक कमेंट आएगा। भारत भू को क्या हो गया है आर्य !
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लो जी इत्ती बडी और मस्त टिप्पणी पढते २ चच्चा टीप्पू सिंह हंसते २ बेहाल हुये..आप भी हो जावो.

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जब फ़ुर्सत मिलिहै तब फ़िर आयेंगे. अभी तो नमस्ते नही जी टिप टिप ले लो जी आप हमारी।

11 comments »

  • Himanshu Pandey said:  

    बहुत जम के टिप टिप कर गये टिप्पणी की टिपकारी ।
    बड़ा विस्तार दे दिया आज टिप्पणी-चर्चा को । बहुत-सी प्रविष्टियाँ भी आ गयीं और उन पर आपकी सप्लीमेंट-कम्प्लीमेंट भी आ गये । आभार ।

  • Udan Tashtari said:  

    मिल गई टिप टिप...झमाकेदार!!

  • चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said:  

    ल ल ल ला लोरी
    भर गई टिप्पी कटोरी:)

  • Mishra Pankaj said:  

    क्या बात है चच्चा आप तो कमाल का खोजते हो :)

  • Ashish Khandelwal said:  

    टिप्पणियों की चर्चा का कंसेप्ट निराला है.. जारी रखिए.. हैपी ब्लॉगिंग

  • ताऊ रामपुरिया said:  

    बहुत सही जा रहे हैं चच्चा आप तो. चच्चा शरणम गच्छामि:)

    वाकई नया कंसेप्ट. आप जो भी हैं सलाम आपको.

    रामराम.

  • Smart Indian said:  

    वाह चच्चा, बहुत अच्छा!

  • शरद कोकास said:  

    टिप्पणी पर टिप्पणी यह तो ऐसा है "कटोरे पे कटोरा बेटा बाप से भी गोरा"

  • प्रकाश पाखी said:  

    टिपियाए जाम ....आइए! आपकी पोस्ट के नाम ..ब्लॉग के नाम...

  • Pawan Kumar said:  

    बहुत बढ़िया चच्च्च्चाआ....................

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