किसने कर दी कैसी गप्प, टिप्पणी बोले टप टप टप......
9/05/2009
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जब से चिट्ठाकारी शुरू की ...तब से जितना मज़ा पोस्ट लिखने में आता था..उससे ज्यादा मज़ा..टीपने में..टीपने और टिपाने का अपना ही एक अलग मज़ा है..एक अलग ही रोमांच है..और एक अलग ही दुनिया है..सो इस मंच से जुडने का लोभ हो गया ....और लिजीये अब डबल डबल झेलिये...अब तक चिट्ठा चर्चा में झेलते थे ..अब इसमें भी....जाईये आप कहां जायेंगे...ये नज़र लौट के खुद आयेगी......क्यॊं ...आयेगी न.....
देशनामा में निशाचर ...टिपियाते हैं...
बचपन में बुजुर्ग को "बुड्ढा" कहने पर पिताजी का झन्नाटेदार थप्पड़ खा चुका हूँ. आज बच्चे जब अपने मां- बाप के साथ ही "यार" , "ओ तेरे की ..." जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं और मां- बाप इसे आधुनिकता की निशानी मान खामोश रहकर बढ़ावा देते हैं तो फिर बड़े होने पर उनसे अपने लिए सम्मान की उम्मीद कैसे रख सकते हैं. लोग - बाग़ भूल जाते हैं कि खाद - पानी पौधे को पोसते हैं और संस्कार बच्चे को...........
कल्पतरु में...
शरद कोकास said...
यह हमेशा होता है कि एजेंट कंफर्म टिकट ला देते है मात्र 30 रुपये मे और यहाँ वेटिंग मिलता है । जिन दिनो भीड़ न हो मै खुद खिड़की से टिकट लेना पसन्द करता हूँ । बहरहाल यह सही मुद्दा आपने उठाया है । -शरद कोकास दुर्ग छ. ग .
अमीर धरती , गरीब लोग में.....
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
पितरों ने देखा कि उन का वंशज कार खरीद रहा है। वे खुद पैदल और बैलगाड़ियों में सफर कर के मर गए और ये वंशज अब खानदान की दौलत पेट्रोल और गैस में फूंकेगा। गुस्सा तो उन्हें आएगा ही। पितरों को गुस्सा क्यों दिलाएँ?अब पिछले महिने तो कपड़े सिलाए थे। अब शो रूम में नई जींस पर नजर गड़ी है। हम ने दो बंडी और पंचे में जिन्दगी गुजार दी। बहुत खर्चीले हैं।अब सजने को यही पखवाड़ा रह गया है कुछ इंतजार नहीं कर सकते।पितरों को गुस्सा क्यों होने दें?जाबालि ने राम से कहा-देखो तुम ने दशरथ को वचन दिया था। वे दिवंगत हो गये और तुम वचन मुक्त हो गए।अब घर चलो। मृत्यु के उपरांत कोई जीवन नहीं होता। जीव यहीँ जन्म लेता है और समाप्त हो जाता है।राम ने कहा-मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे पिता ने तुम्हें मंत्री बना क्यों रखा था। तुम्हारे विचार तो ऐसे हैं कि तुम्हें तथागत के शिष्यों की तरह मृत्युदंड मिलना चाहिए(अब आप सोचते हैं कि राम के जमाने में तथागत बुद्ध कहाँ से आ गए? पर वाल्मिकी रामायण में यही लिखा है।)हम नया खरीद कर पितरों के कोप भाजन क्यों बने।यह तर्क है या कुतर्क पता नहीं। पर नया खरीदेंगे तो घर वाले, रिश्तेदार, मुहल्ले और गाँव वाले, क्या कहेंगे। और खुदा न खास्ता कार से कोई दुर्घटना हो गई तो लोग प्राण पी लेंगे। हमने कहा था मत खरीद श्राद्धों में, ले अब भुगत.....
राज भाटिय़ा ताउनामा ..यानि ताऊ की पहेली में..
अंतर्राष्ट्रिय तिथी रेखा यानि डेट लाईन क्या होती है? और भारतीय उपमहाद्विप मे यह कौन से स्थान से गुजरती है?भाई जब कोई कमीना नेता मर जाता है ओर जनता को बहुत खुशी होती है, ओर चम्मचे एक लाईन मै लग कर उसे श्रांजलि देते है तो उस लाईन को डेट लाईन बोलते है, क्योकि इन चम्च्चो की आत्मा तो कब की डेट हो चुकी होती है, ओर यह लाईन पुरे भारत से हो कर पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान से हो कर अफ़्रीका से गुजरती है इस लिये इस लिये इसे अंतर्राष्ट्रिय तिथी रेखा यानि डेट लाईन बोलते हैराम प्यारी अगर झुठ बोलू तो मुझे तु काट खाना
निर्मल आनंद में..नीरज गोस्वमी कहते हैं
ने कहा...
इतना कुछ सोचने के बाद मैंने पाया कि गुरु का स्वाभाविक स्वरूप स्त्री का है। और वह भी एक बच्चे के साथ या बच्चों से घिरी स्त्री का। हर स्त्री माँ हो यह ज़रूरी नहीं लेकिन हर माँ गुरु ज़रूर होती हैवाह...शत प्रतिशत सत्य बात...बहुत सारगर्भित लेख...बधाई..
गाहे बेगाहे में..
राकेश said...
काहे जोकियो को पिटवाने पर तुले हो दोस्तों. मुझे तो लगता है सच को फेस करने की कूवत ही नहीं रही ज़माने में.भई, अपन तो स्कूल के ज़माने में कुछ मित्रों के साथ खैनी खाना सीख लिये थे और फिर मास्टरजी से उनकी डिबिया यह कह कर मांग लेते थे कि उनके लिए खैनी बना देंगे. बेचारे भोले मास्टर. एक चुटकी उनके लिए और पूरी हथेली भर अपने लिए, जो बाद में आठ-दस बार खायी जाती थी.मास्टरनी देखने का मौक़ा बहुत देर में मिला. ठीक से दिल्ली युनिवर्सिटी आने पर. हालांकि मैंने कोई सिरियस कोशिश नहीं की लेकिन मैं नैन-मटक्के की ऐसे किसी कोशिश को कुसंस्कार या सांस्कृतिक पतनशीलता नहीं मानता.अपनी राय तो ये है कि मास्टर और विद्यार्थी के बीच जितना सरल और सहज संबंध होगा, सीखने-सिखाने की प्रक्रिया उतनी ही आसान और होगी. आखिर ऐसा क्यों होना चाहिए कि हमेशा मास्टरों की दादागिरी ही चले कि स्टूडेंट को क्या पढ़ना है, कैसे पढ़ना है, कब पढ़ना है, कितना पढ़ना है ...? अपना मानना तो यही है हमेशा पारदर्शी और दोतरफ़ा प्रक्रिया अपने हित में होगा.जॉकी का अपने अध्यापका को प्रोपोज करने से मुताल्लिक सवाल का मेरे खयाल से मतलब ये तो नहीं ही है कि वो जॉकी विद्यार्थियों को अपने अध्यापकों को लोधी गार्डन या सफदरजंग का मकबरा टहलाने से वाबस्ता कोई ज्ञान बघार होगा.देवियों और सज्जनों से अपनी यही विनती है कि कृपया अपनी संस्कृति और अपने संस्कार को लेकर इतने सशंकितन न हों. अगर वाकई संस्कृति और संस्कार दमदार है तो कोई इसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है. हमारा तो यही मानना है कि धैर्य, सहिष्णुता, अहिंसा और ज्ञान की भूख हमेशा से हमारी सांस्कृतिक विरासत रही है. कद्र और पालन करने में हर्ज नहीं होनी चाहिए.बहरहाल, अच्छे पोस्ट के लिए बधाई !
कस्बा में....
Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...
पूरा शहर न सही पर शहर के मिजाज की झलक जरूर मिल जाती है .शर्मकारिता की अवधारना बढ़िया है .नया सृजन कम पुराने या के पहले से गधे हुए को सन्दर्भ से काट कर कहीं से कहीं फिट करने का चलन ही दिख रहा है .भौंडी कहने या के वीभत्स नक़ल , पता नहीं चलता.रटो और निगलो . बहुत हुआ तो कहीं नौकर बन जायो.यही वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की मूल खासियत ( defining feature ) है . और अगर यह आकलन सही है तो रही सही कसर टी आर पी और आत्म केन्द्रित , निकृष्ट स्वार्थ में लिप्त ,बाजार बाद ने पूरा करा दिया है. पता नहीं पत्रकारिता के कितने उदयीमान महारथी और संभावनाएं इस अंधी दौड़ में शामिल हो गए.पतन नहीं मोबाइल से पटना और खास कर पटना स्टेशन कैसा दिखेगा ?
badhiya
happy bloging
venus kesari
टिप्पणी चर्चा तो ठीक है
किन्तु
न तो मुझे टिप्पणी चर्चा का हैडर चित्र दिखा और न ही फोंट्स में एकरूपता नज़र आई, हर बदलती टिप्पणी के साथ अक्षर छोटे बड़े होते रहे और पार्श्व रंग भी बदलता रहा
बहरहाल, प्रयास अच्छा है
शुभकामनाएँ
चिट्ठी चर्चा का तरीका बेहतर है । पाबला जी की बात सही है ।
धन्यवाद ।
वाह .. चिट्ठा चर्चा के बाद अब टिप्पणी चर्चा भी .. सचमुच संग्रहनीय टिप्पणियां हैं !!
दिनेशराय जी की टिप्पणी बहुत ही समयानुकूल और सटीक है,
यह टिप्पणी जैसे अपने में एक पूरा आलेख समेटे हुये तर्कसँगत प्रश्न कर रही है !
वाट एन आईडिया झा जी।
बढ़िया है।
भाई भतीजों का नाम रौशन करने के लिये एक और पलेटफार्म उपलब्ध कराने पर बधाई, टिप्प्णी चर्चा में कैरानवी का खयाल रखा करो, अब तक नहीं रखा इसलिये दण्ड के रूप में प्रचार लिंक झेलिये,
विचार करो कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा हैं या यह big game against islam है ?
antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)
इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्त छ अल्लाह के चैलेंज
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सुंदर प्रयास. सतत जारी रहे.
रामराम.
जी हां पाब्ला जी ..आपकी बात बिल्कुल ठीक है...अब आगे से आपकी शिकायतें दूर हो सकें इसका भरसक प्रयास किया जायेगा...और हां ..अगली किस्त बहुत ही अलग और खास अंदाज़ में पेश करने की कोशिश करुंगा....उम्मीद है आप सबको पंसंद आयेगी...
बढिया प्रयास्!!
ab tippaniya bhi ...vaah ji vaah....
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