हां तो बच्चा लोग सबसे पहले तो चच्चा टिप्पूसिंह की टिप टिप पकडो. हम इंहा से आखिरी पोस्ट अठ्ठाईस जनवरी दू हजार दस को लिखा रहा. फ़िर अब आजादी का जश्न मनाने हर साल की तरह वतन लौटा हूं. आप में कई लोगन का मेल हमका लगातार मिलता रहा. ऊही सबसे मालूम पडता रहा कि ई ब्लाग नदिया से काफ़ी सारा पानी बह चुका है.
ब्लागवाणी जैसा सेवाभावी एग्रीगेटर बंद हुई गवा. अनेकों ब्लागर ठंडे हुई गये. या मौज से परेशान हूई कर ब्लागिंग छोड गये अऊर आप सब लोग ई जानत हो कि ई सबका पीछे ऊई लोग हैं जो उनका चर्चा पर हमारा मजाक ऊडाये रहे अऊर आज तक ऊ टिप्पणी नाही हटाया. अब हम वापस वतन आगया हूं त हमरा विरोध चालू रहेगा....
हम आज का टिप्पणी चर्चा हमरा पिछला पोस्ट चिठ्ठाचर्चा डोमेन डकैतों द्वारा लूटा गया? : चच्चा टिप्पू सिंह पर आया एक ठो टिप्पणी से करूंगा
डा० अमर कुमार said:
चर्चा चटखारेदार बन पड़ी है...
लेकिन मिर्ची कुछ ज़्यादा हो गयी,
अब तक जलन हो रही है, चच्चा कोनो मलहम बताओ !
अजी डागदर साहिब...हम का मलहम बतायें? डागदर जी आप हो त दवा भी आपे बताईये....हमरा त जब तक बदला बाकी रहेगा बिल्कुल पटनिया मिर्च ई लोगों को ऊपर नीचे से खिलाता रहूंगा...अब आगे कछु टिप्पणी देखा जाये...
उडनतश्तरी का "वो रिश्ते.." पर
डॉ टी एस दराल ने कहा… आजकल ऐसे भी रिश्ते होते है जो भूख के खौफ से नहीं , शौक से बनते हैं ।
अब उनकी क्या मजबूरी और कैसी संवेदना ।
वैसे कालों से चलते आए इस नाकाम काम को अंजाम देने वाले भी तो हम ही है । सफेदपोश !8/09/2010 07:48:00
वह वाह डागदर दराल साहिब का बात कही है? हम तो आते ही आपका फ़ैन हुई गवा. बहुत जोरदार बात कही आपने.
इसका बाद "चमचा साधै सब सधै--एक व्यंग्य----ललित शर्मा" पर
Ratan Singh Shekhawat ने कहा…
भारतीय संस्कृति में भोजन बिना चमचे के ही किया जाता है, हाथ से खाने में थाली से भोजन सीधा मुंह में जाता है। अगर अंधेरा भी हो जाए तो आंख मुंद कर भी खाएं तो हाथ सीधा मुंह में ही जाता है। जो कि चमचे से संभव नहीं है।
@ भाई जी
आप एक बात भूल गए बेशक हमारी संस्कृति में भोजन बिना चमचे के किया जाता था पर बिना चमचे भोजन बनाना भी तो असंभव है और भारत में भोजन बनाते समय चमचे के साथ साथ चाटू का भी प्रयोग किया जाता था अब भी गांवों में चाटू प्रयोग किया जाता है राबड़ी,खिचड़ा आदि बनाने के लिए |
और चाटुकारिता का नाम भी आप जानते ही है इसलिए ये चाटुकार व चमचे हर संस्कृति व सदी में मौजूद रहे है |
बहरहाल आपका ये व्यंग्य पड़कर मजा आ गया :)
लेख की प्रशंसा को चमचा गिरी मत समझिएगा :) )९ अगस्त २०१० ७:०२ AM
इसी चमचागिरी का कमाल है….चमचे ही बोलेंगे अब…."हरेक इंसान के अंदर होता है एक चैंपियन ........अजय कुमार झा" पर
बी एस पाबला ने कहा… बिल्कुल सही है जी। होता है हरेक के अंदर चैंपियन। कभी कभी तो डेडली कॉम्बो भी हो जाता है :-)
रोचक अभिव्यक्ति, प्रेरक प्रसंग, सारगर्भित विचार८ अगस्त २०१० १०:४९ PM
अनवरत पर "पुलिस का चरित्र क्यों नहीं बदलता?" में
ललित शर्मा said... आजादी के पहले सत्ता-सेठ-मठ के गठजोड़ से जनता का खून चुसा जाता था। आजादी के बाद भी ये गठबंधन कायम है। नेता,सेठ और मठ तीनों के गठजोड़ से ही सत्ता कायम है और जनता का खून चूसने में लगे हैं।
आजादी मिली है लूट पाट और दबंगई, भ्रष्टाचार करने के लिए।
आजादी के सही मायनों की तलाश अभी भी है कि हमने आजादी क्यों हासिल की थी?
क्या यही सब देखने के लिए।9 August 2010 1:24 AM
इसका बाद मा "सड़क मार्ग से महाराष्ट्र: यात्रा के पहले की तैयारी, नोकिया पुराण और 'उसका' दौड़ कर सड़क पार कर जाना" पर
खुशदीप सहगल said... नोकिया को शुरू में ही नो क्यों नहीं किया...
इतनी तैयारी तो अपोलो मिशन ने भी चांद पर जाने से पहले नहीं की होगी...
वैसे रस्से पर बात याद आई...
सड़क पर खराब हो गए एक ट्रक को दूसरा ट्रक रस्से से खींच कर ले जा रहे थे...मक्खन की नज़र पड़ गई...ढक्कन से बोला...देख इनका दिमाग़ खराब...एक रस्से को खींचने के लिए दो-दो ट्रक लगा रखे हैं...
मज़ेदार रहा ट्रेलर...पूरे वृतांत की पिक्चर वाकई टॉपम-टॉप होगी...
डेज़ी की याद दिलाकर फिर भावुक कर दिया...
जय हिंद...August 09, 2010 2:17 PM
आगे देखा जाये… "A confession - बस ये जानना और बाकी था...." पर…
Udan Tashtari ने कहा… इतने बड़े बड़े जोधा लगे हैं कि स्टोरी तो खैर कम्पलीट हो ही जायेगी..हम तो बस इत्ता चाहते हैं कि गाना लिखने का काम हमें दे देना...ढिन्चाक लिख कर देंगे स्क्रिप्ट के हिसाब से...फ्लैश बैक( वो १७-१८ साल पहले की घटना) भी गाने में ही ले जायेगे. :)
बेचारा फत्तु..गांव से इत्ती दूर आकर भी पहचाना गया.Monday, August 09, 2010 5:53:00 PM
इस ढिन्चाक…ढिन्चाक …टिप्पणी का बाद मा…. "मक्खन और मुथैया मुत्थुस्वामी...खुशदीप" पर
राज भाटिय़ा said... हे राम.... जो जो सज्जन रात की डयूटी करते है उन के लिये यह चुटकला नही है... यह भी लिख दे:)
August 9, 2010 1:41 AM
अऊर बच्चा लोग सबका आखिरी मा एक बहुते खतरनाक पोस्ट "मैं फिर से विवाह करना चाहता हूँ....महानता पाने की ओर अग्रसर होना चाहता हूँ.....देश और दुनिया को बदल देना चाहता हूँ.....सतीश पंचम" ……ई सब हम नाही कह रहा हूं…ई खुदे सतीश पंचम कह रहे हैं….अऊर सबको बिगाडने का ठेकादार ताऊ ऊंहा क्या शिक्षा दे रहा है? जरा देखा जाये…
ताऊ रामपुरिया said... चिंता की कोई बात नही है. आप दूसरा विवाह अतिशीघ्र किजिये और कोई आये या ना आये, हम जरूर आऊंगा.
अब पते की बात...दूसरी शादी तो कोई भी ऐरा गैरा कर सकता है. आप हमारी बात मान के चलेंगे तो हम आपकी तिसरी तो क्या चौथी भी करवा के रहूंगा.
कोई शक?
रामराम.August 09, 2010
तो बचुआ लोग…हमको ई ताऊ कोनू बहुते खतरनाक प्राणी लग रहा है….अऊर केतना गलत सलाह देरहा है? पंचम बचुआ ताऊ की बात मानोगे त तुम्हरा खैर नाही… ई ताऊ त तुमको जन्माष्टमी का पहले ही कृष्ण जन्मस्थली पहुंचाये का इंतजाम करता दिख रहा है.
अगर मानना ही है तो ई नीचे वाली सलाह मानो अऊर मजा मा रहो….
डॉ.कविता वाचक्नवी Dr.Kavita Vachaknavee said... ी आपकी तथाकथित महानता की आस कहीं स्त्रीमुक्ति अभियान में न रूपांतरित हो जाए, बंधु ! इसलिए श्रीमती जी की महानता की कामना का भी ओर छोर ज़रा पता कर लें.
August 09, 2010
तो बचूआ लोग अब चच्चा टिप्पू सिंह की टिप टिप….फ़िर जल्द ही मिलूंगा….हमसे कोई संपर्क करना चाहे त हमका ई मेल करो…हम आपका सब मेल गुप्त रखूंगा….