विवेकजी, बीडी पीना शायद उतना बुरा न भी हो (-:

8/22/2009 Leave a Comment

१. आज ब्लॉग ,सब्जी मंडी और प्रौद्योगिकी ! पर यह टिपणि देखिये.
अजय कुमार झा said... ई बात तो सौ टका सच कहे हैं मिसर जी ..एगो ब्लॉगर ..हमेशा ब्लोग्गारे रहता है ..चलते फिरते, सोते जागते ..बकिया जानकारी बहुते उम्दा दिए ..मजा आ गया पोस्ट पढ़ कर
 
२.माफ़ कीजियेगा , ब्लॉग्गिंग में ये ठेका आपको दिया गया है ..या आपने खुद ही ...  पर Arvind Mishra said...नही ,आप बिलकुल बजा फरमा रहे हैं -अब ये फरमान आया है की पुरुष लोग अपना रास्ता नापे ! हद है कैसे कैसे ठसक लिए पड़े हैं लोग यहाँ ! जो संविधान प्रद्दत्त मूल अधिकारों पर भी हल्ला बोल रहे हैं !
 
३. विवेकजी, बीडी पीना शायद उतना बुरा न भी हो (-:  पर विवेक को बीडी पीना सिखा रहे हैं और सफ़ाई हाजिर है. विवेक सिंह said...अजी, हमने तो आज तक बीड़ी का स्वाद ही चखा है बस, वह भी बचपन में, आपकी पोस्ट को आज भी हमारे पापा पढ़ लें तो डण्डे बरसेंगे हम पर, भ्रम मत फैलाइये :)
 
४.गणेश चतुर्थी पर खास विजेट आपके ब्लॉग पर   देखिये ई कौन हैं? कैटरीना said...Aabhaar. वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।  जरुर ले जाईये. अच्छी बात है.
 
५. टेढ़ी बात - कृषिमंत्री के साथ     पर  नीरज गोस्वामी said...जिस प्रकार "टेढी बात-शेखर के साथ" इस समय टी.वी. पर आ रहा सबसे श्रेष्ठ हास्य व्यंग का अनूठा कार्यक्रम है वैसे ही आपके आज ब्लॉग (समझिये सब टी.वी.) की ये पोस्ट (कार्यक्रम) है. आप व्यंग लेखन के उस शिखर पर जा बिराजे हैं जहाँ से आपको हिलाना अब हर ऐरे गैरे नथ्थू खैरे के बस की बात नहीं रही. इस से अधिक कुछ कहने की ताब मेरी लेखनी में नहीं है...क्षमा करें. इक सुझाव है माने ना माने आपकी मर्ज़ी...इस स्क्रिप्ट को तुंरत शेखर सुमन को भेज दें ताकि हम इसका रोचक नाट्य रूपांतरण टी.वी. पर देख लें. नीरज

६.व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई : 22 अगस्त जन्मदिन पर एक मूल्यांकन पर

Shiv Kumar Mishra ने कहा… सुन्दर पोस्ट. आपने अच्छा मूल्यांकन किया. संस्कारधानी जबलपुर के निवासी होने के कारण परसाई जी के बारे में लिखना आपके लिए सचमुच एक इमोशनल बात होगी. आपको बधाई.

७.हरिशंकर परसाई के जन्मदिन के मौके पर  पर ही एक और पोस्ट  अर्क्जेश Aug 22nd, 2009   

खुशी हुई यह पोस्ट देखकर | मैं भी परसाई जी से 'निन्दा रस' से ही परिचित हुआ था | लेकिन तब माध्यमिक कक्शा के छोकरों को नहीं मालूम था की वे हिन्दी व्यंग के शिखर पुरूष को पढ़ रहे हैं | हाँ, हमें पढ़ने में मजा जरूर आया था | एक प्रश्न यह भी था की "निर्दोष मिथ्यावादी किसे कहते हैं" |
"जब छल का ध्रितराष्ट्र आलिन्गन करे तो पुतला ही आगे करना चाहिए" अभी तक याद है |

बाद में देशबंधु में 'पूछिए परसाई से' मैं जरूर पड़ता था | यह भी स्कूल के ही दिन थे | मुझे आर्श्चय होता था कि सारी दुनिया के राजनीति , इतिहास, साहित्य के प्रश्नों के उत्तर ये कहाँ से ढूंढ के दे देते हैं | लेकिन इसमें कोई शक नहीं की उनका अध्ययन बहुत विस्तृत था |
उस कालम में किसी पाठक द्वारा किया गया एक प्रश्न याद आता है कि "यह क्यों कहा जाता है कि गुड गोबर हो गया, जबकि गोबर बहुत उपयोगी है ?"
उत्तर था - "क्योंकि गुड में मिठास होती है, गोबर में नहीं|" :)

"गद्य कोश" की जानकारी देने के लिए आभार |

परसाई जी का व्यंग तिलमिलाने वाला तो है ही, उन्होंने किसी को नहीं बख्शा है | कबीर की तरह | मुझे सबसे अच्छी बात परसाई जी के लेखन में जो लगती है वह है उनकी भाषा-शैली कहीं भी 'ओवर एक्टिंग' की शिकार नहीं है | व्यंग में अतिरिक्त प्रभाव पैदा करने के लिए कहीं भी उन्होंने विचित्र शब्दों का प्रयोग नहीं किया, कहीं आलंकारिकता या क्लिष्टता नहीं| सहज भाषा | सीधी चोट करते थे |

आपने अपने आलेख में लगभग सब कुछ समित ही दिया है |

श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए |

८. ताऊ पहेली - 36  पर सुशील कुमार छौक्कर   हर बार मन्ने ने ही सही जवाब देना पडेगा के? हर बार जीतना भी अच्छा नही लगता जी शर्म आती है। वैसे मुझे इसका जवाब पता ..........
नही है :) लागे वैसे मंदिर सा है।

तो अब आपसे इजाजत चाहेंगे ..कल फ़िर हाजिर होते हैं.

2 comments »

  • अजय कुमार झा said:  

    बहुत दिनों बाद आना हुआ....प्रयास और सोच अनोखी है ...आपके इस प्रयास में हम भी भागीदार बनना चाहते हैं...

  • Leave your response!